________________
उत्तराध्ययन सूत्र विषयानुक्रमणिका
पृष्ठ क्रं. विषय
क्रं.
विषय
विनयश्रुत नामक प्रथम अध्ययन १ - २६
१
२
१. विनय का स्वरूप
२. विनीत शिष्य का लक्षण
३. अविनीत शिष्य का लक्षण
४.
दुःशील शिष्य का निष्कासन
५.
अविनीत शिष्य का व्यवहार
६.
विनयाचरण का उपदेश
७.
विनय का परिणाम
विनय के अनुष्ठान की विधि
८.
६. विनय के सूत्र
१०. गुरु का उपदेश
११. विनीत शिष्य का कर्त्तव्य
१२. विनीत की प्रवृत्ति और निवृत्ति
१३. विनीत अविनीत के गुण
दोष
१४. गुरुजनों के चित्तानुवर्ती होने की विधि
१५. आत्मदमन और उसका फल
१६. आत्म दमन का उपाय १७. विनयाचार
१८. कायिक अविनय
१६. वचन विनय
२०. गुरुजनों का कर्त्तव्य
२१. वचन शुद्धि
२२. संसर्गजन्य दोष परिहार
Jain Education International
३
३
४
४
५
५
६
६
७
८
ह
ह
१०
११
११
१.२
१३
१४
१५
१६ /
२३. गुरु का अनुशासन
२४. कठोर अनुशासन भी हितकारी
२५. आसन संबंधी विनयाचार
२६. यथोचित काल में यथोचित कार्य
२७. एषणा समिति
२८. पिण्डैषणा
२६. ग्रासैषणा
३०. गुरु की प्रसन्नता और अप्रसन्नता
सुशिष्य और कुशिष्य में अंतर
विनीत को लौकिक व लोकोत्तर लाभ
१. क्षुधा परीषह
२. तृषा (पिपासा) परीषह
३. शीत परीषह
४. उष्ण परीषह
५. दंशमशक परीषह
६. अचेल परीषह
पृष्ठ
.१६
३१.
३२.
३३. विनय का महत्त्व .
३४. विनय का फल
२५:
परीषह नामक दूसरा अध्ययन २७ - ५३
३५. परीषह - निरूपण
२८
३६. जम्बू स्वामी की जिज्ञासा
२६.
३७. सुधर्मा स्वामी का समाधान
२६
३८. बाईस परीषहों के नाम
३०
३६.
परीषहों का स्वरूप
३१
For Personal & Private Use Only
१७
१८
१८
१६
२०
२०
२१
२२
२३
२५.
३१
३२
३३
३४
३६
३७
www.jalnelibrary.org