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काविलीयं णामं अहमं अज्झयणं
कापिलीय नामक आठवां अध्ययन उत्थानिका - सातवें अध्ययन में विषय त्याग का वर्णन किया गया है। विषयों के त्याग के लिए निर्लोभता का होना आवश्यक है। अतः इस आठवें अध्ययन में निर्लोभता विषयक कपिल मुनि का वर्णन किया जाता है। इच्छाओं की अमरबेल किस प्रकार बढ़ती जाती है और किस प्रकार उसे क्षण भर में उखाड़ फैका जाता है, इसका जीवंत चित्रण प्रस्तुत अध्ययन में किया गया है। गाथाओं के माध्यम से उक्त विषय का वर्णन करने से पूर्व कपिल के जीवन वृत्तांत की जानकारी आवश्यक है अतः संक्षेप में कपिल-आख्यान इस प्रकार हैं -
कौशाम्बी नगरी के राज सम्मानित काश्यप का पुत्र कपिल पितृविहीन हो जाने पर माँ की प्रेरणा से अपने स्वर्गीय पिता के मित्र इन्द्रदत्त के यहाँ श्रावस्ती नगरी में अध्ययन करने हेतु गया। इन्द्रदत्त ने अपने मित्र-पुत्र को अध्ययन करवाना तो स्वीकार कर लिया किन्तु अपनी गरीबी के कारण ब्राह्मण-पुत्र कपिल के भोजन की व्यवस्था नहीं कर पा रहा था। संयोग से एक सेठ शालिभद्र ने कपिल की भोजन व्यवस्था करना स्वीकार कर लिया। उसने एक दासी की नियुक्ति कर दी जो प्रतिदिन उभयकाल कपिल के लिए भोजन बना दिया करती थी। ..... -यौवनकाल, इन्द्रियों का आकर्षण और प्रतिदिन एकांत वास से दोनों ही एक दूसरे के प्रेमजाल-मोहंजाल में फंस गए। धीरे-धीरे विद्या व्यसनी कपिल, दासी सेवक बनने लगा। पंडित इन्द्रदत्त ने कपिल को बहुत समझाने का प्रयास किया किन्तु कपिल पर छाया हुआ दासी-प्रेम का नशा नहीं उतरा। दासी त्याग के बदले कपिल ने विद्याभ्यास को ही तिलांजलि देदी। कुछ समय बाद उस दासी के गर्भ रह गया। कपिल को भरण पोषण की चिंता सताने लगी। अंत में दासी ने ही उसे उपाय बताते हुए कहा - इस नगर में एक धन नामक परम उदार सेठ रहता है जो प्रातःकाल सर्वप्रथम बधाई देने वाले व्यक्ति को दो मासा सोना देता है। अतः आप कल प्रातःकाल जल्दी उठ कर उसे बधाई दे कर दो मासा सोना ले आईए।
· कपिल ने दासी की बात स्वीकार कर ली। उसने प्रातः शीघ्र ही धन सेठ के यहाँ जाने का विचार किया इस भय से कि कहीं दूसरा व्यक्ति उसमे पहले सोना लेने न पहुँच जाय?
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