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________________ है उत्तराध्ययन सूत्र छठा अध्ययन *** विवेचन - इस गाथा में साधु को खाने वाले किसी अन्नादि पदार्थ को दूसरे दिन के लिए रखने का निषेध किया गया है। १०० सणासमिओ लज्जू, गामे अणियओ चरे । अप्पमत्तो पमत्तेहिं, पिंडवायं गवेस ॥ १७ ॥ कठिन शब्दार्थ - एसणा समिओ एषणा समिति से युक्त, लज्जू - लज्जावान्, ग्राम में, अणियओ अनियत (प्रतिबंध रहित) होकर, चरे विचरे, अप्पमत्तो - एषणा समिति का पालन गा अप्रमत्त गवेषणा करे । भावार्थ - लज्जावंत संयमी साधु एषणा समिति का पालन करता हुआ ग्राम में अनियत वृत्ति वाला हो कर विचरे और प्रमाद रहित हो कर प्रमत्त यानी गृहस्थों के यहाँ से भिक्षा की गवेषणा करे । - - प्रमाद रहित, पमत्तेहिं - प्रमत्त-गृहस्थों से, पिण्डवायं - आहारादि की, 1 - विवेचन - प्रस्तुत गाथा में निर्ग्रन्थ और संयम का सामान्य रूप से स्वरूप बतलाया गया है। शुद्ध संयम का पालक साधु एषणा समिति से युक्त हो कर ग्राम या नगर आदि के प्रतिबंध रहित होकर विचरे तथा प्रमाद का त्याग करके प्रमादयुक्तों - गृहस्थों के घरों से विधि पूर्वक निर्दोष आहार की गवेषणा करे । यद्यपि यहाँ एषणा समिति का उल्लेख किया गया है किन्तु इसमें ईर्या समिति आदि पांचों का ग्रहण कर लेना चाहिये । Jain Education International उपसंहार एवं से उदाहु अणुत्तरणाणी, अणुत्तरदंसी, अणुत्तर - णाणदंसणधरे अरहा णायपुत्ते भयवं वेसालीए वियाहिए ॥ १८ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ छ अज्झयणं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - उदाहु - कहा है, अणुत्तरणाणी - अनुत्तर (प्रधान) ज्ञानी, अणुत्तरदंसीअनुत्तरदर्शी, अणुत्तरणाणंदसणधरे - अनुत्तर ज्ञान, दर्शनधारी, अरहा अरहंत, णायपुत्ते For Personal & Private Use Only - · www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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