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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन कठिन शब्दार्थ - तुलिया - तोल करके ( तुलना करके), आदाय ग्रहण करके, दयाधम्मस्स दया धर्म को, खंति प्रसन्न करे, तहाभूएण - तथाभूत, अप्पणा आत्मा से भावार्थ - सकाम-मरण और अकाम-मरण की तुलना कर के और दोनों में से विशेषता वाले सकाम-मरण को ग्रहण कर के और इसी प्रकार शेष धर्मों की अपेक्षा दयाधर्म की विशेषता जान कर और उसे स्वीकार कर बुद्धिमान् साधु, क्षमा मार्दव आदि गुणों द्वारा अपनी आत्मा को प्रसन्न रखे और मरण समय भी तथाभूत- उसी प्रकार आपको व्याकुलता रहित और शान्त बनाये रखे। ६० *** - - - Jain Education International - तओ का अभिप्पे, सड्डी तालिसमंतिए । विणएज्ज लोमहरिसं, भेयं देहस्स कंखए ॥३१॥ कठिन शब्दार्थ - काले मृत्यु समय के, अभिप्पेए - प्राप्त होने पर, सड्डी - श्रद्धावान् पुरुष, तालिसं तादृश ( उसी प्रकार), अंतिए - गुरु के निकट, विणएन - दूर करे, लोमहरिसं - लोमहर्ष ( रोमांच ) को, भेयं भेद की, देहस्स - शरीर के, कंखए - कांक्षा (इच्छा) करें। भावार्थ - इसके बाद जब योगों की शक्ति हीन हो जाय और वे धर्म-साधना के योग्य न रहें उस समय मृत्यु का अवसर आने पर श्रद्धावान् पुरुष गुरुजनों के समीप वैसा मृत्यु के भय से होने वाले रोमांच को दूर करें और जीवन-मरण की आकांक्षा रहित हो कर शरीर का नाश चाहे अर्थात् पंडित मरण की इच्छा करे । B - - उपसंहार अह कालम्मि संपत्ते, आघायाय समुस्सयं । सकाममरणं मरइ, तिण्हमण्णयरं मुणी ॥ ३२ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ अकाममरणीयं णामं पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ - कालम्मि - काल के, संपत्ते प्राप्त होने पर, आघायाय विनाश करता हुआ, समुस्सयं शरीर का, सकाममरणं सकाम मरण को, मरइ मरता है, तिन्हं - इन तीनों (भक्तप्रत्याख्यान, इंगित, पादपोपगमन) में से, अण्णयरं - किसी एक । - **** विसेसं विशिष्ट को क्षमा से, विप्पसीएज For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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