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________________ ६६ उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन kakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk भावार्थ - भिक्षा मांग कर निर्वाह करने वाला भिक्षु भी यदि दुष्ट आचार वाला हो तो नरक से नहीं बच सकता। भिक्षुक हो अथवा गृहस्थ हो जो सुन्दर अर्थात् निरतिचार व्रत पालन करने वाला है, वही देवलोक में जाता है। विवेचन - दुःशील को केवल भिक्षाचरिता नरक से नहीं बचा सकती है इसके लिए टीकाकार ने निम्न उदाहरण दिया है - राजगृह नगर में एक उद्यान में नागरिकों ने बृहद भोज किया। एक भिक्षुक नगर में तथा उद्यान में जगह जगह भिक्षा मांगता फिरा, उसने दीनता भी दिखाई, परन्तु किसी ने कुछ नहीं दिया। अतः उसने वैभारगिरि पर चढ़ कर रोष वश नागरिकों पर शिला गिरा कर उन्हें मारने का विचार किया। दुर्भाग्य से शिला गिरते समय वह स्वयं शिला के नीचे दब गया। वहीं मर कर सातवीं नरक में गया। अतः दुराचारी को भिक्षाजीविता नरक से नहीं बचा सकती। ___ इससे स्पष्ट है कि सम्यक्त्व पूर्वक अतिचार - निदान-शल्य रहित व्रताचरण करने वाला ही स्वर्ग या मोक्ष का अधिकारी होता है। अगारि सामाइयंगाणि, सड्डी काएण फासए। पोसहं दुहओ पक्खं, एगरायं ण हावए॥२३॥ - कठिन शब्दार्थ - अगारि सामाइयंगाणि - अगारि सामायिक के अंग - गृहस्थ की सम्यक्त्व, देशविरति रूप सामायिक और उसके अंगों का, सही - श्रद्धावान् श्रावक, कारण - काया से, फासए - स्पर्श करे, पोसहं - पौषध, दुहओ - दोनों, पक्खं - पक्षों में, एगरायंएक रात्रि के लिए भी, ण हावए - नहीं छोड़े। भावार्थ - श्रद्धावान् श्रावक गृहस्थ की सम्यक्त्व, श्रुत और देशविरति रूप सामायिक और उसके अंगों का काया से पालन करे, उपलक्षण से मन और वचन से भी पालन करे। दोनों अर्थात् कृष्ण-पक्ष और शुक्ल-पक्ष में अष्टमी, चतुर्दशी अमावस्या और पूर्णिमा के दिन, एक रात्रि के लिए भी पौषध नहीं छोड़े। . विवेचन - प्रस्तुत गाथा में श्रावक के लिए पर्व तिथियों का पौषध न छोड़ने का निर्देश ' किया है। एगरायं' में रात्रि शब्द से सूत्रकार का यह आशय है कि यदि कभी आवश्यक कार्य में संलग्न रहने से गृहस्थ दिन में पौषध नहीं भी कर सके तो भी रात्रि में तो उसे अवश्य पौषध करना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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