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________________ [6] . व राजधानी, जम्बूवृक्ष, माल्यवन्त पर्वत, कच्छ आदि आठ विजय, सीतामुख व वच्छ आदि आठ विजय। सौमनस गजदन्त, देवकुरु, विद्युत्प्रभ गजदन्त, पद्म आदि १६ विजय, मेरु पर्वत, नीलवन्त पर्वत, रम्यकवास क्षेत्र, रुक्मी पर्वत, हैरण्यवत क्षेत्र, शिखरी पर्वत, ऐरावत क्षेत्र। तीर्थंकरों का अभिषेक। दिशाकुमारियों द्वारा किया गया उत्सव। इन्द्रों द्वारा किया गया उत्सव। तीर्थंकरों का स्वस्थान स्थापन। ... ५. खण्डयोजनाधिकार - प्रदेश स्पर्शनाधिकार। खण्ड, योजना, क्षेत्र, पर्वत, कूट, तीर्थ, . श्रेणी, विजय, द्रह और नदीद्वार। ६. ज्योतिषीचक्राधिकार - चन्द्र, सूर्य आदि की संख्या। सूर्यमण्डल की संख्या, क्षेत्र, अन्तर, लम्बाई, चौड़ाई, मेरु से अन्तर, हानि, वृद्धि, गतिपरिमाण, दिन रात्रि परिमाण, तापक्षेत्र, संस्थान, दृष्टिविषय, क्षेत्र गमन तथा ऊपर नीचे और तिर्छ ताप (गरमी)। ज्योतिषी देव की उत्पत्ति तथा इन्द्रों का च्यवन। चन्द्रमण्डलों का परिमाण, मण्डलों का क्षेत्र, मण्डलों में अन्तर, लम्बाई चौड़ाई और गतिपरिमाण। नक्षत्र मण्डलों में परस्पर अन्तर, विष्कम्भ, मेरु से दूरी, लम्बाई चौड़ाई तथा गति परिमाण, चन्द्रगति का परिमाण तथा उदय और अस्त की रीति। ७. संवत्सरों का अधिकार - संवत्सरों के नाम व भेद। संवत्सर के महीनों के नाम। पक्ष, तिथि तथा रात्रि के नाम। मुहूर्त व करण के नाम। चर व स्थिर करण। प्रथम संवत्सर आदि के नाम। ८. नक्षत्राधिकार - नक्षत्र के नाम व दिशा योग। देवता के नाम व तारों की संख्या। नक्षत्रों के गोत्र व तारों की संख्या। नक्षत्र और चन्द्र के द्वारा काल का परिमाण, कुल, उपकुल, कुलोपरात्रि पूर्ण करने वाले नक्षत्रों का पौरुषी प्रमाण। ६. ज्योतिषी चक्र का अधिकार - नीचे तथा ऊपर के तारे तथा उनका परिवार। मेरु पर्वत से दूरी। लोकान्त तथा समतल भूमि से अन्तर। बाह्य और आभ्यन्तर तारे तथा उनमें अन्तर। संस्थान और परिमाण। विमान वाहक देवता। गति, अल्पबहुत्व, ऋद्धि, परस्पर अन्तर तथा अग्रमहिषी। सभाद्वार। ८८ ग्रहों के नाम। अल्पबहुत्व। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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