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________________ सप्तम् वक्षस्कार - जंबूद्वीप : नामकरण हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो । शब्दार्थ - असई - असकृत अनेक बार, अदुवा भावार्थ हे भगवन्! क्या जंबूद्वीप पृथ्वी परिणाम जीव परिणाम या पुद्गलस्कन्ध रूप है ? - हे गौतम! वह पृथ्वीपर्याय, जलपर्याय, जीवपर्याय एवं पुद्गलस्कन्ध रूप है। हे भगवन्! क्या जंबूद्वीप में सर्वप्राण- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के प्राणी, सर्वजीवपंचेन्द्रिय जीव, सर्वभूत- वानस्पतिक जीव, सर्वसत्त्व - पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु के जीव - ये सब पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वोत्पन्न हैं? हाँ गौतम! वे अनेक अथवा अनेक बार उत्पन्न हुए हैं। Jain Education International - ४७६ अथवा । पार्थिव पिण्डरूप, जल परिणाम, जंबूद्वीप : नामकरण (२१२) से केणणं भंते! एवं वुच्चइ - जम्बुद्दीवे दीवे ? गोयमा ! जम्बुद्दीवे णं दीवे तत्थ २ देसे २ तहिं २ बहवे जम्बूरुक्खा जम्बूवणा जम्बूवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव पिंडममंजरिवडेंसगधरा सिरीए अईव २ उवसोभेमाणा २ चिट्ठति, जम्बूए सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवसइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - जम्बुद्दीवे दीवे इति । भावार्थ - हे भगवन्! जम्बूद्वीप इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ? हे गौतम! जम्बूद्वीप में स्थान-स्थान पर जामुन के पेड़ हैं। इनसे भरे हुए वन एवं वनखण्ड हैं। ये हमेशा कुसुमित यावत् पुष्पदंडिकाएं, मंजरियों से अलंकृत हैं, अतीव शोभामय हैं। जंबू सुदर्शना में अत्यंत समृद्धिशाली यावत् पल्योपमस्थितिक अनादृत नामक देव निवास करता है। हे गौतम! इसी कारण वह जंबूद्वीप के नाम से अभिहित हुआ है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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