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________________ ४७६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र हे गौतम! कुल २१० एकेन्द्रिय रत्न परिज्ञापित हुए हैं। हे भगवन्! जंबूद्वीप में कितने सौ एकेन्द्रिय रत्न यथाशीघ्र परिभोगोपयोगी हैं? हे गौतम! न्यूनतम अट्ठाईस तथा अधिकतम २१० एकेन्द्रिय रत्न यथाशीघ्र परिभोग्य हैं। विवेचन - जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विजयों में बत्तीस तथा भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र में एक-एक तीर्थंकर जब होते हैं तब तीर्थंकरों की उत्कृष्ट संख्या ३४ होती है। ___ जब जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह क्षेत्र में शीता महानदी के दक्षिण और उत्तर भाग में एक-एक और शीतोदा महानदी के दक्षिण और उत्तर भाग में एक-एक चक्रवर्ती होता है, तब जघन्य चार चक्रवर्ती होते हैं। __ जब महाविदेह के ३२ विजयों में से अट्ठाईस विजयों में २८ चक्रवर्ती और भरत में एक एवं ऐरवत में एक चक्रवर्ती होता है तब समग्र जम्बूद्वीप में उनकी उत्कृष्ट संख्या तीस होती है। स्मरण रहे कि जिस समय २८ चक्रवर्ती २८ विजयों में होते हैं उस समय शेष चार विजयों में चार वासुदेव होते हैं और जहाँ वासुदेव होते हैं वहाँ चक्रवर्ती नहीं होते। अतएव चक्रवर्तियों की उत्कृष्ट संख्या जम्बूद्वीप में तीस ही बतलाई गई है। चक्रवर्तियों की जघन्य संख्या की संगति तीर्थंकरों की संख्या के समान जान लेना चाहिए। जब चक्रवर्तियों की उत्कृष्ट संख्या तीस होती है तब वासुदेवों की जघन्य संख्या चार होती है और जब वासुदेवों की उत्कृष्ट संख्या ३० होती है तब चक्रवर्ती की संख्या ४ होती है। बलदेवों की संख्या की संगति वासुदेवों के समान जान लेना चाहिए क्योंकि ये दोनों सहचर होते हैं। प्रत्येक चक्रवर्ती के नौ-नौ निधान होते हैं। उनके उपयोग में आने की जघन्य और उत्कृष्ट संख्या चक्रवर्तियों की जघन्य और उत्कृष्ट संख्या पर आधृत है। निधानों और रत्नों की संख्या के सम्बन्ध में भी यही जानना चाहिए। प्रत्येक चक्रवर्ती के नौ निधान होते हैं। नौ को चौतीस से गुणित करने पर ३०६ संख्या आती है। किन्तु उनमें से चक्रवर्तियों के उपयोग में आने वाले निधान जघन्य छत्तीस और अधिक से अधिक २७० हैं। चक्रवर्ती के सात पंचेन्द्रियरत्न इस प्रकार हैं - १. सेनापति २. गाथापति ३. वर्द्धकी ४. पुरोहित ५. गज ६. अश्व ७. स्त्रीरत्न। एकेन्द्रिय रत्न - १. चक्ररत्न २. छत्ररत्न ३. चर्मरत्न ४. दण्डरत्न ५. असिरत्न ६. मणिरत्न ७. काकणीरत्न। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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