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________________ सप्तम् वक्षस्कार - चतुर्विधरुपधारी विमान वाहक देव गोली के समान पीले भूरे नेत्र युक्त, परिपुष्ट, सुंदर जंघा युक्त, विशाल स्कन्ध युक्त, कोमल, विशद, सूक्ष्म, उत्तम लक्षण युक्त, स्कन्धों पर उगे हुए अयालों से सुशोभित, ऊपर सुंदर रूप में झुकाई हुई, सहज रूप में हलन चलन युक्त पूंछ से युक्त, वज्रमय नख, दाढ़ एवं दांत युक्त तपनीय स्वर्ण जैसी जिह्वा और तालु से युक्त, तपनीय स्वर्ण निर्मित रस्से द्वारा विमान के साथ भलीभांति जुते हुए, इच्छानुरूप, प्रीतिमय, मनोरम, अपरिमित तीव्र गति से चलने वाले, अपार बल, शक्ति एवं पराक्रम से युक्त, तेज, गंभीर स्वर से गर्जन करते हुए, मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा गगन मंडल को गुंजाते हुए, दिशाओं को शोभित करते हुए चार सहस्त्र सिंह रूपधारी देव विमान के पूर्वी भाग का परिवहन किए चलते हैं। चंद्र विमान के दाहिनी ओर सफेद वर्णयुक्त, सुभग-सुंदर प्रभायुक्त, शंख तल, निर्मलदधि, गोदुग्ध, फेन तथा रजत राशि की तरह निर्मल, उज्वल दीप्तियुक्त, वज्रमय, द्विधा विभक्त, कुंभ की तरह विशाल मस्तक युक्त, सुस्थित, सुपुष्ट, उत्तम, वज्रमय, गोलाकार सूंड, उस पर उभरे हुए द्युतिमय रक्त कमल से प्रतीत होते बिन्दुओं से सुशोभित उन्नत मुख युक्त, तपनीय स्वर्णमय, विशाल सहज रूप में चपलतामय, हिलते हुए, निर्मल, उद्योतमय कर्ण युक्त, शहद जैसे रंग के देदीप्यमान, चिकने, कोमल, पलक युक्त, त्रिवर्ण-तीन वर्ण के रत्नों जैसी आँखों से युक्त बाहर निकले हुए, कोमल श्वेत चमेली के पुष्प के समान धवल (सफेद) एक समान संस्थान युक्त, घाव रहित, दृढ़, संपूर्णतः स्फटिकमय, सुजात - सुंदर रूप में उत्पन्न मूसल के सदृश अग्रभागों पर रत्नजटित, स्वर्णनिर्मित खोलों से सुसज्ज, दांतों से सुशोभित, स्वर्णमय, विशाल तिलक आदि पुष्पों से परिमंडित विविध मणियों एवं रत्नों से सज्जित मुख युक्त, गले में धारण किए हुए अलंकारों से विभूषित, कुंभस्थल के दोनों भागों के मध्य रखे हुए, नीलम निर्मित चित्रमय हत्थे सहित, उज्वल, वज्ररत्नमय, तेज, सुंदर, अंकुश से युक्त, कक्ष में बंधी हुई रस्सी से युक्त, दर्पोद्धत, उत्कट बलयुक्त, निर्मल, सघन मण्डल युक्त, वज्रमय लालों से सुशोभित लटकते हुए अलंकार सहित, विविध मणियों एवं रत्नों से सजे हुए दोनों ओर विद्यमान छोटी-छोटी घंटियों से समायुक्त, रजत निर्मित बंधी हुई रज्जु से लटकते हुए दो घटाओं के मधुर स्वर से मनोहर प्रतीत होते हुए, स्वभावतः सुंदर निष्पत्तिमय, समुचित प्रमाणोपेत, उत्तम लक्षण युक्त, प्रशस्त, रमणीय बालों से सुशोभित पूंछ युक्त, मांसल, परिपूर्ण, कछुए की तरह उन्नत चरणों द्वारा धीर गंभीर ध्वनि युक्त अंक रत्नमय नाखून युक्त तपनीय स्वर्णमय जिह्वा एवं तालु युक्त तपनीय स्वर्ण निर्मित रस्से से सुंदर रूप में जुते हुए यथेच्छ, उल्लासमय मन की गति सदृश सत्वर Jain Education International For Personal & Private Use Only ४६५ www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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