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प्रज्ञप्ति सूत्र
गाथा जिन नक्षत्रों द्वारा मास परिसमाप्त होते हैं, वे मास सदृश नाम युक्त नक्षत्र कुल
कहलाते हैं। जो कुलों के अधस्तन समीप होते हैं, वे उपकुल कहलाते हैं। जो कुलों एवं उपकुलों के अधस्तन होते हैं, वे कुलोपकुल कहे जाते हैं। ये अभिजित, शतभिषक, आर्द्रा और अनुराधा है।
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बारह उपकुल इस प्रकार हैं १. श्रवण २. भाद्रपदा ३. रेवती ४. भरणी ५. रोहिणी ६. पुनर्वसु ७. आश्लेषा ८ पूर्वाफाल्गुनी ६. हस्त १०. स्वाति ११. ज्येष्ठा और १२. पूर्वाषाढा । चार कुलोपकुल इस प्रकार हैं - १. अभिजित २. शतभिषक ३. आर्द्रा ४. अनुराधा ।
हे भगवन्! पूर्णिमाएं तथा अमावस्याएं कितनी कही गई हैं?
हे गौतम! वे बारह-बारह कही गई हैं, जो इस प्रकार है -
१. श्राविष्ठी श्रावणी २. प्रोष्ठपदी - भाद्रपदी ३. आश्वयुजी - आसोजी ४. कार्तिकी ५. मार्गशीर्षी ६. पौषी ७ माघी ८ फाल्गुनी ६. चैत्री १०. वैशाखी ११. ज्येष्ठा मूली और १२. आषाढी ।
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हे भगवन्! श्रावणी पूर्णिमा के साथ कितने नक्षत्रों का योग होता है ?
हे गौतम! श्रावणी पूर्णिमा के साथ अभिजित, श्रवण तथा धनिष्ठा इन तीन नक्षत्रों का योग होता है।
हे भगवन्! भाद्रपदी पूर्णिमा के साथ कितने नक्षत्रों का योग होता है ?
हे गौतम! इसके साथ शतभिषक, पूर्वभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा - इन तीन नक्षत्रों का योग होता है।
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हे भगवन्! आसोजी पूर्णिमा के साथ किन-किन नक्षत्रों का योग होता है?
हे गौतम! उसके साथ रेवती एवं अश्विनी नक्षत्र का योग होता है।
कार्तिक पूर्णिमा के साथ भरणी एवं कृत्तिका, मार्गशीर्षी पूर्णिमा के साथ रोहिणी एवं मृगशिर, पौषी पूर्णिमा के साथ आर्द्रा, पुनर्वसु और पुष्य, माघी पूर्णिमा के साथ अश्लेषा और मघा, फाल्गुनी पूर्णिमा के साथ- पूर्वा फाल्गुनी एवं उत्तराफाल्गुनी, चैत्री पूर्णिमा के साथ हस्त और चित्र, वैशाखी पूर्णिमा के साथ स्वाति और विशाखा, ज्येष्ठा मूली पूर्णिमा के साथ अनुराधा ज्येष्ठा तथा मूल और आषाढ़ी पूर्णिमा के साथ पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों का योग होता है।
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