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सप्तम् वक्षस्कार - नक्षत्र-चन्द्र एवं सूर्य का योग
तिण्णेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य। वच्चंति मुहुत्ते तिण्णि चेव वीसं अहोरत्ते॥३॥ अवसेसा णक्खत्ता पण्णरसवि सूरसहगया जंति। बारस चेव मुहुत्ते तेरस य समे अहोरत्ते॥४॥
भावार्थ - हे भगवन्! अट्ठाईस नक्षत्रों में से अभिजित नक्षत्र कितने मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग युक्त रहता है?
हे गौतम! अभिजित नक्षत्र चन्द्रमा के साथ ६ मुहूर्त तक योग युक्त रहता है। इन गाथाओं द्वारा-नक्षत्रों का चंद्र के साथ कितने मुहूर्त तक योग होता है, यह ज्ञातव्य है
गाथाएं - अभिजित नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ एक अहोरात्र में तीस मुहूर्त में उसके भाग प्रमाण योग रहता है। इससे अभिजित चन्द्र - योग का समय २० - १३० = ६२.०.
१६७६७६७ फलित होता है॥१॥
शतभिषक, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति तथा ज्येष्ठा - इन छह नक्षत्रों का चंद के साथ १५ मुहूर्त तक योग रहता है॥२॥ ____उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं उत्तरभाद्रपदा, पुनर्वसु, रोहिणी एवं विशाखा - इनका चंद्र
के साथ पैंतालीस मुहूर्त पर्यन्त योग रहता है॥३॥ __ अवशिष्ट १५ नक्षत्रों का चन्द्र के साथ तीस मुहूर्त तक योग रहता है। नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ यह योग क्रम ज्ञातव्य है। - हे भगवन्! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित नक्षत्र का सूर्य के साथ कितने अहोरात्र तक योग रहता है? - हे गौतम! इसका सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छह मुहूर्त तक योग रहता है। प्रस्तुत गाथाओं द्वारा नक्षत्र एवं सूर्य का योग ज्ञातव्य है___ गाथा - अभिजित मुहूर्त का सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छह मुहूर्त तथा शतभिषक, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति तथा ज्येष्ठा नक्षत्रों का सूर्य के साथ छह अहोरात्र एवं २१ मुहूर्त तक योग रहता है।
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