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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
शब्द युक्त, वे स्वर्ण से चमकते हुए रत्नों के बाहुल्य से निर्मल उज्ज्वल प्रदक्षिणावर्त्त मण्डल द्वारा
मेरु पर्वत के चारों ओर गतिशील रहते हैं।
विवेचन
इस सूत्र में प्रयुक्त मानुषोत्तर पर्वत के संदर्भ में ज्ञातव्य है कि मनुष्यों की उत्पत्ति, स्थिति तथा मृत्यु आदि मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले होते हैं, उससे आगे नहीं होते । अर्थात् वह मनुष्यों से रहित स्थान है, इसलिए उसे मानुषोत्तर कहा जाता है।
विद्या आदि विशिष्ट लब्धियों या शक्तियों के अभाव में मनुष्य उसका लंघना नहीं कर सकते, इसलिए भी उसे मानुषोत्तर कहा जाता है।
इन्द्र के अभाव में वैकल्पिक व्यवस्था
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(१७४)
तेसि णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ, से कहमियाणिं पकरेंति ?
गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं
विहरति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ ।
इंदट्ठाणे णं भंते! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए?
गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए ।
बहिया णं भंते! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम जाव तारारूवा तं चेव णेयव्वं णाणत्तं विमाणोववण्णगा णो चारोववण्णगा चारट्ठिइया णो गइरइया णो गइसमावण्णगा पक्किट्टगसंठाणसंठिएहिं जोयणसयसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं सयसाहस्सियाहिं वेउव्वियाहिं बाहिराहिं परिसाहिं महया हयणट्ट जाव भुंजमाणा सुहलेसा मंदलेसा मंदायवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिया सव्वओ समंता ते पएसे ओभासंति उज्जोवेंति पभासेंतित्ति । तेसि णं भंते! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ से कहमियाणिं पकरेंति जाव जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा इति।
शब्दार्थ - पकरेंति - करते हैं।
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