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प्रथम वक्षस्कार - सिद्धायतनकूट की अवस्थिति
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सिद्धाययणे पण्णत्ते, कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूर्ण कोसं उर्ल्ड उच्चत्तेणं, अणेगखंभसयसण्णिविटे, अब्भुग्गयसुकयवइरवेइआ-तोरण-वररइयसालभंजिअ-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-ल?-संठिय-पसत्थ-वेरुलिय विमलखंभे, णाणामणिरयणखचिअउज्जलबहुसमसुविभत्तभूमिभागे, ईहामिग-उसभ-तुरग-णरमगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय जाव पउमलयभत्तिचित्ते, कंचणमणिरयण-थूभियाए, णाणाविहपंच-वण्ण-घंटापडागपरिमंडियग्गसिहरे, धवले, मरीइकवयं विणिम्मुयंते, लाउल्लोइयमहिए, जाव झया। तस्स णं सिद्धाययणस्स तिदिसिं तओ दारा पण्णत्ता। ते णं दारा पंच धणुसयाई उई उच्चत्तेणं, अड्डाइजाई धणुसयाई विक्खंभेणं तावइयं चेव पवेसेणं, सेयवरकणगथूभियागा दारवण्णओ जाव वणमाला।
तस्स णं सिद्धाययणस्स अंतो बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव तस्स णं सिद्धाययणस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे देवच्छंदए पण्णत्ते-पंचधणुसयाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाइं पंच धणुसयाई उद्धं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए। एत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सहेप्पमाणमित्ताणं संणिक्खित्तं चिट्ठइ, एवं जाव धूवकडुच्छगा।
शब्दार्थ - संखित्ते - संक्षिप्त-संकरा, तणुए - पतला, ईहामिग - ईहामृग-भेड़िया, उसभ - वृषभ-बैल, तुरग - अश्व, णर - मानव, विहग - पक्षी, वालग - व्यालक-सर्प, रुरु - कस्तूरी मृग, सरभ - अष्टापद, चमर - चंवर, कुंजर - हाथी, वणलय - वनलता, पउमलय - पद्मलता, भत्तिचित्ते - चित्रांकित, थूभियाए - स्तूपिका-गुम्बज, पडाग - पताका, मरीड़ - किरणे, विणिम्मुअंते - प्रस्फुटित होती है, लाउल्लोइम-महिए - गोबर आदि से प्रलिप्त, देवच्छंदए - देवासन विशेष, जिणुस्सेहापमाणमित्ताणं - तीर्थंकरों की शारीरिक ऊँचाई जितनी ऊँची, धूवकडुच्छुगा - धूप के कुडछे-धूपदान। __- भावार्थ - हे भगवन्! जंबूद्वीप में अवस्थित भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर सिद्धायतन कूट कहाँ प्रज्ञप्त हुआ है?
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