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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र
सक्के देविंदे देवराया अण्णेहिं बहूहिं भवणवइ-वाणमंतर - जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव णाइयरवेणं ताए उक्किट्ठाए जाव वीईवयमाणे २ जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव पंडगवणे जेणेव अभिसेयसिला जेणेव अभिसेयसीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सणसण्णेत्ति ।
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शब्दार्थ - पकडिज्जमाणे हाथ में पकड़े हुए, ओवयमाणे अवक्रांत करते हुए, विग्गहेहिं - गंतव्य स्थान हेतु गमन क्रम, ओसोवणिं - अवस्वापिनी - देवऋद्धि जनित मायामयी निद्रा । भावार्थ पालक देव से यान - विमान की विकुर्वणा का संवाद सुनकर शक्रेन्द्र हर्षित यावत् चित्त में आनंदित हुआ । उसने जिनेन्द्र भगवान् के समक्ष जाने योग्य सब प्रकार के दिव्य अलंकारों से विभूषित उत्तर - वैक्रिय रूप की विकुर्वणा की । वैसा कर परिवार सहित आठ इन्द्राणियाँ, नाट्यमण्डलियों, गांधर्व-संगीत प्रवण देव मण्डलियों के साथ यान - विमान की अनुप्रदक्षिणा की। पूर्वदिग्वर्ती तीन सीढियों के रास्ते से विमान में चढ़ा यावत् पूर्वाभिमुख होकर सिंहासनासीन हुआ। इसी प्रकार सामानिक आदि देव भी उत्तर दिशावर्ती त्रिसोपानमार्ग से होते हुए प्रत्येक अपने-अपने पूर्व वर्णित उत्तम आसनों पर बैठे। बाकी के सभी देव और देवियाँ दक्षिणवर्ती त्रिसोपान मार्ग से होते हुए उसी प्रकार यावत् सिंहासनों पर बैठे।
शक्रेन्द्र के यों विमान में आरूढ़ हो जाने के बाद आठ-आठ मांगलिक द्रव्य यथाक्रम रवाना किए गए। फिर शुभ शकुन के रूप में जलपूर्ण कलश, झारी, चंवर सहित दिव्य छत्र, दिव्य पताका तथा वायु द्वारा उड़ायी जाती दर्शनीय तथा आकाश स्पर्शी विजय वैजयन्ती लिए देवगण यथाक्रम चले ।
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तत्पश्चात् छत्र, विशिष्ट वर्णकों एवं चित्रों द्वारा विभूषित झारी, वज्ररत्नमय गोलाकार सुन्दर संस्थान युक्त चिकनी, घिसी हुई, तरासी हुई प्रतिमा की तरह सुकोमल, मृदुल, अनेक प्रकार की पंचरंगी सहस्त्रों पताकाओं से विभूषित, सुंदर हवा द्वारा उड़ायी जाती विजय वैजयन्ती ध्वजा, छत्र और अतिछत्र से सुशोभित, उन्नत, आकाश का स्पर्श करते हुए से शिखर से युक्त एक सहस्त्र योजन उच्च, अतिविशाल, महेन्द्रध्वज यथाक्रम आगे आगे चले।
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उसके पश्चात् अपने कार्य के अनुरूप वेश से सुसज्ज सब प्रकार के आभरणों से विभूषित पांच सेनाओं और उनके सेनापतियों ने यावत् प्रस्थान किया। फिर बहुत से आभियोगिक देव
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