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पंचम वक्षस्कार - रुचकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव ३४६ 2-0-0-0-0-0-0-0-0-00-00-00-10-19-19-12-00-00-00-00-00-00-00-00-00-0--19-08-2810-08-12-10-08-10-20-00-00-00-21- तीर्थंकर - साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध धर्मसंघ के सप्रतिष्ठापक, स्वयंसंबुद्ध - स्वयं बोध प्राप्त, पुरुषों में उत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर पुण्डरीक - सर्वविध-मालिन्य रहित होने के कारण पुरुषों में उत्तम कमल की तरह श्रेष्ठ निर्विकार, निर्लिप्त, उत्तम गंधहस्ती के सदृश, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोकप्रदीप, लोकप्रद्योत, अभयप्रद, चक्षुप्रद, मार्गदर्शक, शरणप्रद, जीवन दायक-आध्यात्मिक जीवन देने वाले, बोधि प्रदायक, धर्मप्रद, धर्मोपदेष्टा, धर्मनायक, धर्मरथ के सारथि चक्रवर्ती सम्राट की तरह धर्म साम्राज्य के शासक, संसार सागर में डूबते लोगों के लिए द्वीप की तरह शरणभूत, अप्रतिहत ज्ञान, दर्शन के धारक, व्यावर्तछया - अज्ञान आदि आवरणों से रहित, जिन - राग द्वेष विजेता, ज्ञायक-अध्यात्म तत्त्व वेत्ता, ज्ञापकअध्यात्म तत्त्व को बतलाने वाले, तीर्ण - संसार सागर को पार करने वाले, तारक - ओरों को संसार सागर से पार उतारने वाले, बुद्ध-बोधक, मुक्त-मोचक - कर्मबंध से छूटने का मार्ग बताने वाले, सर्वज्ञ सर्वदर्शी, शिव-कल्याणकारी, अचल - स्थिर, अरुक - बाधा रहित, अनंत, अक्षय, अबाध, अपुनरावृत्ति - जहाँ से वापस न आना पड़े, जन्म-मरण रूप संसार में न लौटना पड़े, सिद्धगति प्राप्त जिनेश्वरों को नमस्कार हो। आदिकर यावत् सिद्धावस्था प्राप्ति हेतु यत्नशील तीर्थंकर देव को नमस्कार हो। यहाँ विद्यमान मैं अपने जन्मस्थान में स्थित भगवान् को वंदना करता हूँ। वहाँ स्थित भगवान् यहाँ स्थित मुझ शक्रेन्द्र को देखें। यों कहकर वह भगवान् को वंदन, नमन करता है। फिर पूर्वाभिमुख होकर सिंहासनासीन हो जाता है। तब देवेन्द्र, देवराज शक्र के मन में ऐसा भावोद्वेलन संकल्प उत्पन्न हुआ - जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थंकर का जन्म हुआ है। अतीत, वर्तमान एवं भविष्यवर्ती देवेन्द्रों देवराजों का यह परम्परा से आया हुआ आचार है कि वे तीर्थंकरों का विशाल जन्मोत्सव आयोजित करते हैं। अतः मैं भी तीर्थंकर देव के जन्मोत्सव का समायोजन करूँ।। ___ऐसा विचार, निश्चय कर देवराज शक्र ने अपने हरिनिगमैषी संज्ञक देव को बुलाया और उससे कहा - हे देवानुप्रिय! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में बादलों की गर्जना के समान गंभीर, अत्यन्त मधुर शब्द युक्त, एक योजन गोलाकार, सुंदर स्वर सभा युक्त सुघोषा नामक घण्टा को तीन बार बजाते हुए जोर से यह उद्घोषणा करो-देवराज शक्र की आज्ञा है वे जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थंकर का महान् जन्मोत्सव समायोजित करने जा रहे हैं। देवानुप्रियो! आप सभी अपनी सब प्रकार की समृद्धि, द्युति, ऐश्वर्य, बल, प्रभाव, आदर, विभूषा अलंकरण, नाटक और नृत्यादि के साथ किसी भी अवरोध या विघ्न की चिन्ता न करते हुए सर्वविध फूलों,
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