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________________ पंचम वक्षस्कार - रुचकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव ३४१ **--*-*-02-08-2-12-2-12-12-11-10-28-12-28-12-2-1-1-1-1-1-98-28-3-2-12-12-08-12-28-02-08--*-*-0--12-20- साहरंति, तए णं ताओ मज्झिमरुयगवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ सरगं करेंति २ त्ता अरणिं घडेंति अरणिं घडित्ता सरएणं अरणिं माहति २ त्ता अग्गिं पाडेति २ त्ता अग्गिं संधुक्खंति २ त्ता गोसीसचंदणकटे पक्खिवंति २ त्ता अग्गिं उज्जालंति २ त्ता समिहाकट्ठाई पक्खिविंति २ त्ता अग्गिहोमं करेंति २ त्ता भूइकम्मं करेंति २ त्ता रक्खापोट्टलियं बंधंति, बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गहाय भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियाविंति भवउ भयवं पव्वयाउए २। तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारीमहत्तरियाओ भयवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं तित्थयरमायरं च बाहाहिं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता तित्थयरमायरं सयणिजंसि णिसीयावेंति, णिसीयावित्ता भयवं तित्थयरं माऊए पासे ठवेंति, ठवित्ता आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिटुंतीति। शब्दार्थ - कप्पंति - काटती हैं, विवरगं -- खड्डा, खणंति - खोदती हैं, णिहणंति - रखती है, सरगं - बाण जैसे नुकीले। भावार्थ - उस काल, उस समय पूर्वदिशावर्तिनी आठ दिक्कुमारिकायें अपने-अपने कूटों पर यावत् उसी प्रकार (पूर्ववत्) सुखोपभोग में अभिरत थी। उनके नाम-नरोत्तरा नंदा, आनंदा, नंदिवर्धना, विजया, वैजयंती, जयंती एवं अपराजिता थे। बाकी सारा वर्णन पूर्ववत् है। उन्होंने तीर्थंकर की माता से कहा - आप डरना मत यावत् पूर्व दिशा में हाथों में दर्पण लिए आगानपरिगान करती हुई स्थित रहती हैं। ___ उस काल, उस समय दक्षिण रुचक वासिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने-अपने प्रासादों में उसी प्रकार यावत् सुखोपभोग में अभिरत थीं। उनके नाम-समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीमति, शेषवती, चित्रगुप्ता एवं वसुंधरा हैं। वे भगवान् तीर्थंकर की माता से यावत् कहती हैं-आप भयभीत न हों यावत् भगवान् तीर्थंकर एवं उनकी माता की दक्षिण दिशा में हाथ में झारी लिए आगान-संगान करने लगी। उस काल, उस समय पश्चिम रुचकवासिनी, महिमाशालिनी आठ दिक्कुमारिकाएं अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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