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चतुर्थ वक्षस्कार - यमक संज्ञक पर्वत द्वय
. २६३ -----------0-00-00-00-00-00-00-08-08-0-0-0-0-08-08-08-28-12-20-04-02-28-08-10-19-10-19-19-08-08-10 योजन परिमित है। ये मोटाई में अर्द्धकोस प्रमाण हैं। श्रेष्ठ जंबूनद जातीय स्वर्ण से निर्मित एवं उज्वल है। इनमें से प्रत्येक एक-एक पद्मवर वेदिका एवं एक-एक वनखंड द्वारा घिरी हुई बतलाई गई है। त्रिसोपान एवं चारों दिशाओं में चार तोरण आदि का वर्णन पूर्व के वर्णन के अनुसार योजनीय है।
उनके ठीक मध्य में एक श्रेष्ठ प्रासाद है। वह ऊंचाई में ६२- योजन तथा ऊंचाई ३१ योजन एक कोस प्रमाण है। इसके उपरितन हिस्से, भूमिभाग, संबद्ध सामग्री युक्त सिंहासन मुख्य प्रासाद को चारों ओर से घेरने वाली छोटे प्रासादों की कतारें आदि का वर्णन अन्यत्र से ग्राह्य है। ___छोटे प्रासादों की कतारों में से पहली कतार के प्रासाद ऊंचाई में ३१ योजन एक कोस प्रमाण हैं। वे १५- योजन से कुछ अधिक आयाम-विस्तार युक्त हैं। वे ७- योजन से कुछ अधिक आयाम-विस्तार युक्त है। तृतीय प्रासादपंक्ति के प्रासाद ७- योजन से कुछ अधिक ऊंचे तथा ३- योजन से कुछ अधिक आयाम-विस्तार वाले हैं। संबंधित अंगोपांग सहित सिंहासन पर्यंत सारा वर्णन पूर्वानुरूप कथनीय है। ___मूल प्रासाद के उत्तरपूर्व दिक्भाग में यमक देवों की सुधर्मा सभाएं कही गई हैं वे सभाएं ' १२- योजन लम्बी, छह योजन एक कोस चौड़ी तथा ६ योजन ऊँची हैं। वे सैकड़ों स्तंभों पर टिकी हुई है। इन सुधर्मा सभाओं की तीन दिशाओं में तीन द्वार कहे गए हैं। वे द्वार ऊंचाई में दो योजन, चौड़ाई में एक योजन हैं। उनके प्रवेश मार्गों का विस्तार भी उतना ही है यावत् वनमाला तक का वर्णन पूर्वानुरूप कथनीय है।
उन द्वारों में से प्रत्येक के आगे मुखमंडप-द्वारों के आगे निर्मित मंडप हैं। वे लम्बाई में १२- योजन, चौड़ाई में छह योजन एक कोस तथा ऊँचाई में दो योजन से कुछ अधिक हैं यावत् द्वार आदि का भूमिभाग पर्यन्त वर्णन पूर्वानुसार ग्राह्य है। मुख मंडपों के आगे विद्यमान प्रेक्षाग्रहों का प्रमाण मुखमंडपों के तुल्य है। भूमिभाग, मणिपीठिका आदि पहले ही वर्णित की जा चुकी है। ये मणिपीठिकाएं एक योजन आयाम-विस्तार युक्त तथा अर्द्ध योजन मोटाई युक्त हैं। ये सर्वथा मणिमय हैं। वहाँ स्थित सिंहासनों का वर्णन पहले की तरह योजनीय है।
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