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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया णेमा एवं जहा जीवाभिगमे जाव अट्ठो जाव धुवा णियया सासया जाव णिच्चा।
शब्दार्थ - जगईए - प्राचीर या परकोटे द्वारा, संपरिक्खित्ते - संपरिवृत्त, विक्खंभेणं - चौड़ाई, संक्खित्ता - संक्षिप्त, गोपुच्छसंठाणसंठिया - गाय के पूंछ के आकार में संस्थित, अच्छा - स्वच्छ, सण्हा - श्लक्ष्ण, लण्हा - चिकनी, घट्ठा - घृष्ट-घिसी हुई जैसी, मट्ठा - मृष्ट-तरासी हुई जैसी, णीरया - रजरहित, णिम्मला - मैल रहित, णिप्पंका - कर्दम रहित, णिक्कंकड - निष्कंटक-अव्याहत, छाया - आभा, सस्सिरिया - श्रीयुक्त, अभिरूवा - सुंदर, पडिरूवा - आकर्षक, गवक्खकडएणं - गवाक्ष-जालीदार झरोखे द्वारा, उप्पिं - ऊपर, पउमवरवेइया - पद्मवरवेदिका-कमलाकृतियुक्त वेदिका, णेमा - नेमा-पृथ्वी से ऊपर निकला हुआ भाग, धुवा - ध्रुव, णियया - नियत, सासया - शाश्वत, णिच्चा - नित्य।
___ भावार्थ - वह जंबूद्वीप एक वज्रनिर्मित प्राचीर द्वारा चारों ओर से परिवृत-घिरा हुआ है। वह प्राचीर-परकोटा आठ योजन ऊँचा, मूल में बारह योजन चौड़ा, मध्य में आठ योजन चौड़ा तथा उपरितन भाग में चार योजन चौड़ा है। वह मूल में विस्तीर्ण-फैला हुआ, मध्य में संक्षिप्त-सकड़ा तथा ऊपरी भाग में तनु-पतला है। वह आकार में गाय के पूँछ के सदृश है। वह सर्वथा रत्नमय, स्वच्छ, सुकोमल, चिकना, घिसा हुआ सा, तरासा हुआ सा, रजशून्य, मैल रहित, पंकरहित एवं अव्याहत प्रकाश युक्त है। वह प्रभा-विशिष्ट आभा एवं उद्योत-द्युति से युक्त है। उसे देखते ही चित्त प्रसन्न हो जाता है। वह दर्शनीय, सुंदर, मनोरम एवं मन में बस जाने वाला है।
उस प्राचीर के चारों ओर एक जाली युक्त गवाक्ष-झरोखों की पंक्ति है। वह आधा योजन ऊँची, पाँच धनुष चौड़ी, स्वच्छ, सुकोमल, चिकनी, घिसी हुई सी, तरासी हुई सी, रजशून्य, मैल एवं कर्दम रहित तथा अप्रतिहत प्रकाशयुक्त है। प्रभा, कांति एवं द्युतियुक्त है, मनोज्ञ, दर्शनीय एवं सुन्दर है। ___उस प्राचीर के ठीक मध्य भाग में एक विशाल कमलाकृतियुक्त वेदिका है, जो अर्द्धयोजन ऊँची एवं पाँच सौ धनुष चौड़ी है। उसकी परिधि प्राचीर जितनी है। यह सर्वरत्नमय, स्वच्छ यावत् सुंदर है। उस पद्मवरवेदिका का वर्णन वैसा ही है, जैसा जीवाभिगम सूत्र में आया है। तदनुसार उसका भूमि से ऊपर निकला हुआ भाग वज्ररत्नमय है यावत् पद्मवरवेदिका ध्रुव, नियत, शाश्वत तथा नित्य है।
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