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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र पलिओवमट्ठिया, णिहिसरिणामा य तत्थ खलु देवा । जेसिं ते आवासा, अक्किज्जा आहिवच्चा य ॥ १२ ॥ एए व णिहिरयणा पभूयधणरयणसंचयसमिद्धा । जे वसमुवगच्छंति, भरहाहिवचक्कवट्टीणं ॥१३॥ तणं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, एवं मज्जणघरपवेसो जाव सेणिप्पसेणिसद्दावणया जाव णिहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिमं करेइ, तए णं से भरहे राया णिहिरयणाणं अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सद्दावेइ २ ता एवं गच्छ णं भो देवाणुप्पिया ! गंगामहाणईए पुरत्थिमिल्लं णिक्खुडं दुच्वंपि सगंगासागर - गिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेहि २ ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहित्ति । १८८ तणं से सुसेणे तं चेव पुव्ववण्णियं भाणियव्वं जाव ओअवित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणइ.....पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ । तए णं से दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्ससंपरिवुडे दिव्वतुडिय जाव आपूरेंते चेव० विजयक्खंधावारणिवेसं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ० दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं विणीयं रायहाणिं अभिमु पयाए यावि होत्था । तणं से भरहे राया जाव पासइ २ त्ता हट्ठतुट्ठ जाव कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति ॥ शब्दार्थ - णिहिरयणाणं निधिरत्नों के, अपरिमिय - अपरिमित, अक्खय क्षयरहित, लोकोपचयकंरा - लोक में अभिवृद्धि देने वाली, णिवेस - स्थापन-समुत्पादन, वदन, अक्किज्जा - अक्रयणीय, आहिवच्चा - आधिपत्य । भावार्थ - तदनंतर राजा भरत ने गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे पर बारह योजन लंबी जहवी - जाह्नवी - गंगा, वयण Jain Education International - For Personal & Private Use Only - अक्षय www.jalnelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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