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तृतीय वक्षस्कार - मेघमुख देवों का उपसर्ग
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पतणुतणायंति २ ता खिप्पामेव विजुयायंति २ त्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमेत्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं वासं वासिउं पवत्ता यावि होत्था।
शब्दार्थ - पडिसेहिया - प्रतिषेधित-रोके हुए, उत्तागणा - मुंह ऊपर किए हुए, वीइवयमाणा - चलते हुए (व्यतिव्रजमाना), परिहिया - पहने हुए, वेउब्विय-समुग्घाएणं - वैक्रिय समुद्घात, समोहणंति - आत्म-प्रदेशों का बाहर निर्गमन, पतणुतणायंति - गरजने लगे, विजुयायंति - विद्युत चमकाने लगे, वासिङ - बरसने लगे, ओघ - समूह।
भावार्थ - सेनापति सुषेण द्वारा आहत, मथित यावत् मैदान छोड़कर भागे हुए आपात किरात भयभीत, त्रास युक्त व्यथायुक्त, पीडायुक्त और उद्वेगयुक्त होकर घबरा उठे। युद्ध में स्थिर नहीं रह सके। स्वयं को बल रहित, अशक्त, पौरुष-पराक्रम विहीन अनुभव करने लगे। सेनापति का सामना करना संभव नहीं है, ऐसा विचार कर वे अनेक योजन पर्यन्त भाग छूटे तथा परस्पर एक स्थान पर मिले। जहाँ सिंधु महानदी थी, वहाँ आए। बालू के संस्तारक तैयार किए। उन पर स्थित होकर तेले की तपस्या अंगीकार की। मुंह ऊँचा किए हुए, वस्त्र रहित होकर अपने कुल देवता मेघमुख नामक नागकुमारों का मन में ध्यान करते हुए स्थित रहे। • जब उनकी तेले की तपस्या पूर्ण होने को थी तब मेघमुख नागकुमारों के आसन चलायमान हुए। इन्होंने अपने आसनों को चलित देखा तो अवधिज्ञान को प्रयुक्त किया। अवधिज्ञान द्वारा इन्होंने आपात किरातों को देखा। उन्हें देखकर वे आपस में कहने लगे - देवानुप्रियो! जंबुद्वीप में, उत्तरार्द्ध भरत क्षेत्र में, सिंधु महानदी के तट पर बालू के बिछौनों पर स्थित होकर आपात किरात अपने मुंह ऊँचे किए, वस्त्र रहित होकर तेले की तपस्या में संलग्न हैं। हम मेघमुख नागकुमार उनके कुलदेवता हैं। वे हमारा ध्यान कर रहे हैं। देवानुप्रियो! हमारे लिए यह उचित है कि हम प्रादूर्भूत हो। आपस में ऐसा विचार कर उन्होंने वैसा करने का निश्चय किया। वे उत्कृष्ट तीव्र गति से यावत् चलते-चलते जंबूद्वीप के अंतगर्त उत्तरार्द्ध भरत क्षेत्र में, सिंधु महानदी के तट पर जहाँ आपात किरात थे। वहाँ आए। उन्होंने छोटे-छोटे घुघुरुओं से युक्त पाँच रंगों के श्रेष्ठ वस्त्र पहन रखे थे, अंतरिक्ष में स्थित उन्होंने आपात किरातों को संबोधित कर कहा - देवानुप्रियो! तुम बालू के संस्तारकों पर वस्त्र रहित होकर तेले की तपस्या में स्थित होते हुए हम मेघमुख नागकुमारों का, जो तुम्हारे कुल देवता है, ध्यान कर रहे हो। यह देखकर हम तुम्हारे समक्ष प्रादुर्भूत हुए हैं। देवानुप्रियो! तुम्हारे मन में क्या है? हम तुम्हारे लिए क्या करें?
यह सुनकर आपात चिलात हर्षित, परितुष्ट और मन में आनंदित हुए यावत् हृदय में
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