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तृतीय वक्षस्कार - भरत का मागध तीर्थ की दिशा में प्रस्थान
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उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिए करयलपरिग्गहियं दसणहं सिर जाव अंजलिं कह भरहं रायं जएणं विजएणं वद्धावेइ २ त्ता एवं वयासी - अभिजिए णं देवाणुप्पिएहिं केवलकप्पे भरहे वासे पुरथिमेणं मागहतित्थमेराए तं अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी अहण्णं देवाणुप्पियाणं आणत्तीकिंकरे अहण्णं देवाणुप्पियाणं पुरथिमिल्ले अंतवाले तं पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया! ममं इमेयारूवं पीइदाणं तिकट्ट हारं मउडं कुंडलाणि य कडगाणि य जाव मागहतित्थोदगं च उवणेइ। ___तए णं से भरहे राया मागहतित्थकुमारस्स देवस्स इमेयारूवं पीइदाणं पडिच्छइ २ त्ता मागहतित्थकुमारं देवं सकारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता पडिविसजेइ, तए णं से भरहे राया रहं परावत्तेइ २ ता मागहतित्थेणं लवणसमुद्दाओ पच्चुत्तरइ २ ता जेणेव विजयखंधावारणिवेसे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता तुरए णिगिण्हइ २ ता रहं ठवेइ २ त्ता रहाओ पच्चोरुहइ २ त्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मज्जणघरं अणुपविसइ २ त्ता जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ २ ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ २ त्ता भोयणमंडवाओ .पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीयइ २ त्ता अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! उस्सुक्कं उक्करं जाव मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियं महामहिमं करेह २ त्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, तए णं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रण्णा एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ट जाव करेंति २ त्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणंति।
तए णं से दिव्वे चक्करयणे वइरामयतुंबे लोहियक्खामयारए जंबूणयणेमीए णाणामणिखुरप्पथालपरिगए मणिमुत्ताजाल-भूसिए सणंदिघोसे सखिखिणीए दिव्वे तरुणरविमंडल-णिभे णाणामणिरयण-घंटियाजालपरिक्खित्ते सव्वोउय
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