________________
अवसर्पिणी : दुःषम- सुषमा आरक
अवसर्पिणी : दुःषम- सुषमा आरक
(४४)
द्वितीय वक्षस्कार
-
Jain Education International
तीसे णं समाए दोहिं सागरोवम कोडाकोडीहिं काले वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव अणंतेहिं उट्ठाणकम्म जाव परिहायमाणे परिहायमाणे एत्थ णं दूसमसुसमा णामं समाकाले पडिवजिंसु समणाउसो ! |
तीसे णं भंते! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए - आलिंगपुक्खरेइ वा जाव मणीहिं उवसोभिए, तंजहा- कित्तिमेहिं चेव० ।
६७
तीसे णं भंते! समाए भरहे० मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे प० ? गोयमा! तेसिं मणुयाणं छव्विहे संघयणे छव्विहे संठाणे बहूइं धणूई उड्लं उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउयं पालेंति २ ता अप्पेगइया णिरयगामी जाव देवगामी अप्पेगइया सिज्झंति बुज्झति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, तीसे णं समाए तओ वंसा समुप्पज्जित्था, तंजहा अरहंतवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे, तीसे णं समाए तेवीसं तित्थयरा एक्कारस चक्कवट्टी णव बलदेवा णव वासुदेवा समुप्पज्जित्था ।
भावार्थ - हे आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस समय तीसरे आरक का दो सागरोपम कोड़ाकोड़ी काल बीत जाने पर अनंत वर्ण पर्याय उसी प्रकार यावत् अनंत उत्थान कर्म यावत् इस दुःषमसुषमा काल में क्रमशः इनकी परिहानि होती रहती है।
हे भगवन्! उस समय भरतक्षेत्र का आकार-प्रकार कैसा होता है? -
हे गौतम! उस समय भरतक्षेत्र का भूमिभाग अत्यंत समतल और रम्य होता है । ढोलक उपरितन चर्मपुट के समान मुलायम यावत् रत्नशोभित होता है। वे रत्न कृत्रिम और अकृत्रिम - नैसर्गिक होते हैं।
हे भगवन्! उस समय के मानवों का आकार स्वरूप किस प्रकार का होता है ?
हे गौतम! उस समय के मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन और छह प्रकार के संस्थान होते
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org