SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ वर्ग ३ अध्ययन ८ - देवकी की पुत्र-अभिलाषा ************************************************************** वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव अरहा अरिट्ठणेमि तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठणेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ, दुरूहित्ता जेणेव बारवई णयरी तेणेव उवागच्छइ, उगच्छित्ता बारवई णयरी अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव सए वासघरे जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सयंसि सयणिजंसि णिसीयइ। ___ कठिन शब्दार्थ - बाहिरिया - बाहर की, उवट्ठाणसाला - उपस्थान शाला (बैठक), पच्चोरुहइ - उतरती है, सए - अपना, वासघरे - वासगृह, सयणिज्जंसि - शय्या पर, णिसीयइ - बैठती है। . भावार्थ - छहों मुनियों को वंदन-नमस्कार कर के भगवान् अरिष्टनेमि के समीप आई और भगवान् को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिण कर के वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर के अपने धार्मिक रथ पर चढ़ कर द्वारिका नगरी के मध्य में हो कर क्रमशः अपनी बाहरी उपस्थान शाला (बैठक) के निकट पहुँची। फिर धार्मिक रथ से उतर कर. और अपने भवन में प्रवेश कर, सुकोमल शय्या पर बैठी। देवकी की पुत्र-अभिलाषा (२५) तए णं तीसे देवईए देवीए अयं अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - एवं खलु अहं सरिसए जाव णलकूबर-समाणे सत्तपुत्ते पयाया, णो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणए समणुभूए। एस वि य णं कण्हे वासुदेवे छहंछण्हं मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छइ। कठिन शब्दार्थ - अज्झथिए - आध्यात्मिक - आत्माश्रित, चिंतिए - चिंतित - स्मरण रूप, पत्थिए - प्रार्थित - अभिलाषा रूप, मणोगए - मनोगत - मनोविकार रूप, संकप्पे - संकल्प, बालत्तणए समणुभूए - बाल-क्रीड़ा के आनंद का अनुभव, छण्हं मासाणंछह महीनों में, पायवंदए - चरणवंदन के लिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy