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वर्ग ३ अध्ययन ८
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भगवान् अरिष्टनेमि का समाधान
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तथा तुम्हारे जो सुंदर सुकुमार पुत्र होते उसे उठा कर सुलसा के पास रख आता था । इस प्रकार
हरिनैगमेषी देव ने छह बार ऐसा किया।
पुत्र संहरण का कारण
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• देवकी देवी ने पूर्व जन्म में अपनी जेठानी के छह रत्न चुराये थे, उसके बदले में इसके छह पुत्र चुराये गये।
सुलसा और देवकी पूर्व जन्म में देराणी-जेठाणी थी। एक बार देवकी ने सुलसा के छह रत्न चुरा कर भय के वश किसी चूहे के बिल में डाल दिए । बिल में छुपाने का मतलब यह था कि खोजने पर कदाचित् मिल भी जाय तो मेरी बदनामी नहीं हो और चूहों ने इधर-उधर कर दिया समझ कर संतोष कर लिया जाय । कदाचित् नहीं मिले तो कुछ दिनों बाद में उन्हें अपने बना लूंगी। संयोगवश वे रत्न देराणी को मिल गये और उनकी नजरों में चूहा चोर समझा गया । कहा जाता है कि वह चूहा हरिनैगमेषी देव बना और देराणी सुलसा के रूप में उत्पन्न हुई। पूर्व भव की रत्न चोरी के फलस्वरूप देवकी के पुत्रों का हरण हुआ और चूहे पर चोरी का दोष मंढा जाने से हरिनैगमेषी देव ने पुत्रों का हरण कर सुलसा के पास पहुंचाया। हरिनैगमेषी देव चूहे का जीव कहा गया है।
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भगवान् अरिष्टनेमि ने देवकी से कहा- हरिनैगमेषी देव द्वारा संहरण किये जा कर सुलसा को दिए गए ये छहों मुनि तुम्हारे ही अंगजात हैं, सुलसा गाथापत्नी के नहीं। अतः अतिमुक्तक कुमार की भविष्यवाणी असत्य नहीं, अपितु सत्य है ।
शंका - तृतीय बर्ग के प्रथम अध्ययन में तो अनीकसेन आदि को नाग एवं सुलसा की संतान बताया है। यहां स्वयं भगवान् ने देवकी की संतान बताया है, क्या यह परस्पर विरोधी बात नहीं हैं?
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समाधान लोक-प्रसिद्धि अनीकसेनादि के लिए यही थी, अतः लोक सम्मत्त सत्य की शास्त्रकार उपेक्षा नहीं करते। वे छहों भाई वहीं बड़े हुए थे। वहीं विवाह हुआ तथा उन्हीं की आज्ञा से प्रव्रजित हुए, अतः उस अपेक्षा से वे उनकी संतानें भी हैं ही तथा जन्मदात्री माता देवकी थी, अतः यह बात भी सही है। इसमें विरोध नहीं है ।
बड़ा होकर बालक गोद दिया जाता है वह दत्तक पुत्र भी लोक व्यवहार एवं कानून विधि के अनुसार गोद लेने वाले का गिना ही जाता है अतः स्वयं सुलसा भी इस हेराफेरी से अनजान थी तथा सभी लोग उन्हें नाग - सुलसा की संतति मानते थे । अतः पहले छहों नाग-सुलसा के पुत्र स्वयं आगमकार ने फरमाये इसलिए इस कथन में और पूर्व कथन कोई असंगतता नहीं है।
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