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अन्तकृतदशा सूत्र 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來水水水水水水水水水水水水水水水水水水*********************** २. जब इन दोनों मान्यताओं पर विचार करते हैं तो वसुदेव हिण्डी (श्री संघ दासगणि विरचित) एवं पाण्डव चारित्र प्रमुख ग्रंथों में अंधकवृष्णि के पुत्र दश दर्शाहों के नाम (१. समुद्रविजय, २. अक्षोभ ३. स्तिमित ४. सागर ५. हिमवान ६ अचल ७. धरण ८. पूरण ६. अभिचन्द्र १०. वसुदेव) मिलते हैं जिनमें से वसुदेव को छोड़ कर, शेष नव नाम दोनों में मिल जाते हैं। किन्तु पाण्डव चारित्र प्रमुख ग्रन्थों में माता का नाम सुभद्रा (भद्रा) मिलता है तो अंतगड़ सूत्र में धारिणी तथा आगमिक दृष्टि से भगवान् अरिष्टनेमि के दीक्षित होने के पहले ही समुद्रविजयादि १० दशार्ह तो राज्यपद पर आसीन हो गये थे। किन्तु अंतगड़ सूत्र के प्रथम द्वितीय वर्ग में वर्णित अठारहों ही बिना राज्य किये कुमार पद में ही दीक्षित हुए थे। अंतः इन अठारह कुमारों की १० दशाओं में तो गिनती करना उचित नहीं है। पौत्र एवं पितामह का सरीखा नाम देने की प्रथा होने के अनुसार एवं अनेक रानियों का नाम 'धारिणी' संभव होने से वैमात्रिक भाईयों के सरीखे नाम भी हो सकते हैं। तथापि प्रथम वर्ग एवं द्वितीय वर्ग के कुमार सहोदर भाई नहीं जचते हैं। क्योंकि प्रथम वर्ग वर्णित १० कुमारों के पिता अंधकवृष्णि राजा थे। तो द्वितीय वर्ग वर्णित कुमारों के पिता वृष्णि थे। उनके लिये राजा होने का उल्लेख नहीं है। अतः उपर्युक्त बात पर विचार करने पर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि - “अंधकवृष्णि राजा के १० सहोदर पुत्र तो रोजा बन जाने के कारण एवं बलदेव वासुदेव के वंश होने के कारण दश दशार्ह के रूप में प्रसिद्ध हुए, शेष धारिणी आदि अनेक रानियों से अनेक पुत्र हुए - वे कुमार पद से ही दीक्षित हो गये। द्वितीय वर्ग में वर्णित आठ कुमार दशवें वृष्णि कुमार के पुत्र थे। (प्रथम वर्ग के दशवें अध्ययन विष्णु का कहीं कहीं पर ‘वृष्णि' पाठान्तर भी मिलता है।) वृष्णिकुमार राजा नहीं बनने से उनको द्वितीय वर्ग में राजा नहीं बताया गया है। इस प्रकार दोनों वर्गों के अठारह कुमारों को सहोदर भाई नहीं मानने की तरह ही ज्यादा झुकाव होता है।" बाकी तो विशिष्ट ज्ञानी कहे वही प्रमाण है।
॥ द्वितीय वर्ग के आठ अध्ययन समाप्त।
॥ इति द्वितीय वर्ग समाप्त॥
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