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________________ दसमं अज्झराणं - दसवाँ अध्ययन महासेनकृष्णा आर्या (हद) एवं महासेण कण्हा वि णवरं आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । कठिन शब्दार्थ - आयंबिलवड्ढमाणं - आयम्बिल वर्द्धमान । भावार्थ - इसी प्रकार महासेनकृष्णा का वर्णन भी जानना चाहिये । वह राजा श्रेणिक की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता थी । दीक्षा ली और आर्य चन्दनबाला आर्या की आज्ञा लेकर उसने 'आयम्बिल - वर्द्धमान' नामक तप किया। तं जहा आयंबिलं करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता बे आयंबिलाई करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता तिण्णि आयंबिलाई करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता चत्तारि आयंबिलाई करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता पंच आयंबिलाई करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करिता छ आयंबिलाई करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता एकोत्तरियाए वुड्ढीए आयंबिलाई वड्ढति चउत्थंतरियाई जाव आयंबिलसयं करेइ, करित्ता चउत्थं करेइ । कठिन शब्दार्थ - आयंबिलं - आयम्बिल, वहू॑ति - बढ़ते हैं, एकोत्तरियाए वुट्टीए एक एक बढ़ाते हुए, चउत्थंतरियाई मध्य में एक एक उपवास, आयंबिलसयं - Jain Education International - - आयंबिल । भावार्थ - इसकी विधि इस प्रकार है - सर्व प्रथम आयम्बिल किया। दूसरे दिन उपवास किया, फिर दो आयम्बिल किये। फिर उपवास किया। फिर तीन आयम्बिल किये। फिर उपवास किया। फिर चार आयम्बिल किये। फिर उपवास किया। फिर पाँच आयम्बिल किये। फिर उपवास किया। फिर छह आयम्बिल किये। फिर उपवास किया। इस प्रकार मध्य में एक-एक उपवास करती हुई एक सौ आयम्बिल तक किये। फिर उपवास किया। इस प्रकार 'आयम्बिलवर्द्धमान' नामक तप पूरा किया। For Personal & Private Use Only सौ www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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