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________________ वर्ग ८ अध्ययन - पितृसेनकृष्णा आर्या Jain Education International करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छव्वीसइमं करेइ, करिता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठावीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करता सव्वकामगुणियं पाइ, पारित्ता तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बत्तीसइमं करेइ, करिता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करिता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चोत्तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बत्तीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता एवं ओसारेइ जाव चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारे । एक्काए कालो एक्कारसमासा पण्णरस य दिवसा । चउण्हं तिण्णि वरिसा दस य मासा । सेसं तहेव । जाव सिद्धा । २१५ ******** भावार्थ - इसकी विधि इस प्रकार है - सर्व प्रथम उपवास किया। पारणा किया। इसकी भी पहली परिपाटी के सभी पारणों में विगयों का सेवन वर्जित नहीं है। फिर बेला किया। पारणा किया। फिर उपवास किया। पारणा किया। फिर तेला किया। इस प्रकार बीच में एकएक उपवास करती हुई पितृसेनकृष्णा आर्या पन्द्रह उपवास तक बढ़ी। फिर उपवास । बीच में सोलह। सोलह के बाद उपवास और फिर उपवास किया। फिर इसी प्रकार पश्चानुपूर्वी से मध्य में एक-एक उपवास करती हुई जिस प्रकार चढ़ी थी, उसी प्रकार पन्द्रह उपवास से एक उपवास तक क्रम से उतरी। इस प्रकार मुक्तावली तप की एक परिपाटी समाप्त हुई । काली आर्या के समान इसकी चारों परिपाटियाँ पूर्ण की। एक परिपाटी में ग्यारह महीने और पन्द्रह दिन लगे और चारों परिपाटियों में तीन वर्ष और दस महीने लगे। अन्त में संलेखना - संथारा किया और समस्त कर्मों का क्षय कर के सिद्ध - पद को प्राप्त हुई । विवेचन - मुक्तावली शब्द का अर्थ है - मोतियों का हार। जिस प्रकार मोतियों का हार बनाते समय उन मोतियों की स्थापना की जाती है, उसी प्रकार जिस तप में उपवासों की स्थापना की जाए, उस तप को मुक्तावली तप कहते हैं। इस तप की स्थापना इस प्रकार है - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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