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________________ सत्तमं अज्झयणं - सातवां अध्ययन - वीरकृष्णा आर्या (६५) एवं वीरकण्हा वि, णवरं महालयं सव्वओभई तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तं जहा - चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दुवालसमं करेइ, करित्ता सम्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पढमा लया। कठिन शब्दार्थ - महालयं सव्वओभदं - महासर्वतोभद्र, पढमा - प्रथम, लया - लता। भावार्थ - इसी प्रकार वीरकृष्णा रानी का चरित्र भी जानना चाहिए। यह श्रेणिक राजा की भार्या और कोणिक राजा की छोटी माता थी। इन्होंने भी दीक्षा अंगीकार की और आर्य चन्दनबाला आर्या की आज्ञा ले कर ‘महासर्वतोभद्र' तप करने लगी। इसकी विधि इस प्रकार है - सब से पहले उपवास किया, फिर पारणा किया। फिर बेला किया। इसी क्रम से तेला, चोला, पचोला, छह और सात किये। यह प्रथम लता हुई। दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारिता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। बीया लया। - भावार्थ - फिर चोला, पचोला, छह, सात, उपवास, बेला और तेला किया। यह दूसरी लता हुई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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