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________________ पंचमं अज्झायणं - पांचवां अध्ययन सुकृष्णा आर्या (६३) एवं सुकण्हा वि, णवरं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। पढमे सत्तए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणगस्स। दोच्चे सत्तए दो-दो भोयणस्स दो-दो पाणगस्स। तच्चे सत्तए तिण्णि भोयणस्स तिण्णि पाणगस्स। चउत्थे चउ, पंचमे पंच, छट्टे छ, सत्तमे सत्तए सत्त दत्तीओ भोयणस्स पडिग्गाहेइ, सत्त पाणगस्स। कठिन शब्दार्थ - सत्तसत्तमियं - सप्तसप्तमिका, भिक्खुपडिमं - भिक्षु-प्रतिमा, सत्तएसप्ताह, एक्केक्कं - एक-एक, दत्तिं - दत्ति (दात) को, भोयणस्स - भोजन की, पाणगस्स-. पानी की, सत्तमे सत्तए - सातवें सप्ताह में। __ भावार्थ - इसी प्रकार सुकृष्णा आर्या का भी चरित्र जानना चाहिए। यह भी श्रेणिक राजा की भार्या और कोणिक राजा की छोटी माता थी। इन्होंने भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर दीक्षा अंगीकार की और आर्य चन्दनबाला आर्या की आज्ञा प्राप्त कर ‘सप्तसप्तमिका' भिक्षु-प्रतिमा तप करने लगी। इसकी विधि यों है - प्रथम सप्ताह में गृहस्थ के घर से प्रतिदिन एक दत्ति अन्न और एक दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है। दूसरे सप्ताह में प्रतिदिन दो दत्ति अन्न की और दो दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है। तीसरे सप्ताह में प्रतिदिन तीन-तीन दत्ति, चौथे सप्ताह में चार-चार, पाँचवें सप्ताह में पाँच-पाँच, छठे सप्ताह में छह-छह दत्ति और सातवें सप्ताह में प्रतिदिन सात-सात दत्ति अन्न और पानी की ग्रहण की जाती है। विवेचन - देते समय एक बार में जो दिया जाये वह दत्ति है। पहली बार में चाहे एक रोटी उठाई या चार रोटियां एक साथ उठाई, वह एक दत्ति है। तरल पदार्थों की धार न टूटे तब तक एक दत्ति है। एवं खलु सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपण्णाए राइदिएहिं एगेण य छण्णउएणं भिक्खासएणं अहासुत्तं जाव आराहित्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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