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वर्ग ८ अध्ययन २ - कनकावली तप की आराधना व सिद्धि
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मासा बारस य अहोरत्ता। चउण्हं पंच वरिसा णव मासा अट्ठारस दिवसा, सेसं तहेव। णव वासा परियाओ जाव सिद्धा। ___ कठिन शब्दार्थ - कणगावली - कनकावली, णवरं - विशेषता है, तिसु ठाणेसु - तीन स्थानों पर, अट्टमाइं - तेले।
__भावार्थ - एक समय सुकाली आर्या, चन्दनबाला आर्या के समीप गई और वंदननमस्कार कर हाथ जोड़ कर बोली - 'हे महाभागे! मैं आपकी आज्ञा प्राप्त कर कनकावली तप करना चाहती हूँ।' उत्तर में उन्होंने कहा - 'जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो।' इसके बाद सुकाली आर्या ने काली आर्या द्वारा आराधित रत्नावली तप के समान ‘कनकावली' तप किया। रत्नावली तप से कनकावली तप में यह विशेषता है कि रत्नावली तप में जहां तीन स्थानों पर आठ-आठ
और चौंतीस बेले किए जाते हैं, वहाँ कनकावली तप में उतने ही तेले किए जाते हैं। इस कनकावली तप की एक परिपाटी में एक वर्ष, पांच महीने और बारह दिन लगते हैं। इसमें अठासी दिन पारणे के और एक वर्ष दो महीने और चौदह दिन तपस्या के होते हैं। चारों परिपाटी को पूरा करने में पांच वर्ष नौ महीने और अठारह दिन लगते हैं।
- शेष सारा वर्णन काली आर्या के समान हैं। नौ वर्ष चारित्र का पालन कर अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। ___विवेचन - जैसे रत्नावली तप ८८ पारणों के साथ चार परिपाटी वाला है वैसे ही कनकावली तप भी है पर विशेषता यह है कि रत्नावली तप में जहां आठ, चौतीस और आठ बेले होते हैं वहां तीनों स्थानों पर कनकावली तप में तेले होते हैं। कनकावली तप में ५० दिन ज्यादा लगने के कारण इसकी एक परिपाटी में एक वर्ष, पांच मास बारह दिन लगे और चार परिपाटियों में ५ वर्ष ६ माह १८ दिन लगे। शेष सारा वर्णन सरल है। ६ वर्ष संयम पाल कर सुकाली आर्या मोक्ष में गई।
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