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२. अन्तकृतदशा सूत्र 本來多半************************************來來來來來來來來來來來中******* सुकुमारशरीरी आत्माएं संयम स्वीकार करके अपना अस्तित्त्व ही बदल देती प्रतीत होती है। घोर तप से कर्मों को तप्त करती हुई भी वे तप्त नहीं होती। मुक्ति प्राप्ति का अटल उत्तुंग अभिग्रह धारण कर वे कर्म-कटक में वीरवरबाला की भांति जूझती है। संयम समरांगण की श्रेष्ठ सुभट सिद्ध होती है। जब लक्ष्य महान् हो, साधक दृढ़ संकल्प एवं कृतनिश्चय से युक्त हो तो सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
काली आर्या का धर्मचिंतन .. . (८८) तए णं तीसे कालीए अज्जाए अण्णया कयाइं पुव्वरत्तावरत्तकाले अयमज्झथिए जहा खंदयस्स चिंता जाव अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा धिई संवेगे वा ताव मे सेयं कल्लं जाव जलंते अज्ज-चंदणं अज्जं आपुच्छित्ता अज्ज-चंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाए समाणीए संलेहणा झूसणाझूसियाए भत्तपाणपडियाइक्खियाए कालं अणवकंखमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छई उवागच्छित्ता अज्ज चंदणं अज्जं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता मंसित्ता एवं वयासी - "इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा जाव विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह।" ...
तओ काली अज्जा अज्ज-चंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी संलेहणा झूसणा झूसिया जाव विहरइ।
कठिन शब्दार्थ - पुव्वरत्तावरत्तकाले - पिछली रात्रि के समय, जहा खंदयस्स चिंतास्कंदक के समान विचार आया, उट्ठाणे - उत्थान - उठना चेष्टा करना, कम्मे - भ्रमण आदि की क्रिया रूप कर्म, बले - शरीर सामर्थ्य, वीरिए - वीर्य - जीव की शक्ति आंतरिक सामर्थ्य, पुरिसक्कार - पुरुषकार - पौरुष आत्मोत्कर्ष, परक्कमे - पराक्रम - कार्य निष्पत्ति में सक्षम प्रयत्न, सद्धा - श्रद्धा, धिई - धृति अर्थात् धीरज, शारीरिक कष्टों को सहने योग्य मानसिक उर्जा, सेयं - श्रेयस्कारी, संलेहणा - संलेखना, झूसणा - सेवन करना,
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