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अहमो वग्गो - आठवां वर्ग
प्रस्तावना .... . (८४) जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते। अट्ठमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?
भावार्थ - श्री जम्बू स्वामी, श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं - 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अन्तकृतदशा नामक आठवें अंग के सातवें वर्ग में जो भाव कहें, वे मैंने आप से सुने। अब आठवें वर्ग में भगवान् ने क्या भाव कहे हैं? सो कृपा कर फरमाइये।'
दस अध्ययनों के नाम एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -
काली सुकाली महाकाली, कण्हा सुकण्हा महाकण्हा। . वीरकण्हा य बोद्धव्वा, रामकण्हा तहेव य। पिउसेणकण्हा णवमी, दसमी महासेणकण्हा य॥
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं - 'हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतकृतदशा सूत्र के आठवें वर्ग में दस अध्ययनों का कथन किया है। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. काली २. सुकाली ३. महाकाली ४. कृष्णा ५. सुकृष्णा ६. महाकृष्णा ७. वीरकृष्णा 5. रामकृष्णा ६. पितृसेनकृष्णा और १०. महासेनकृष्णा।
. काली नामक प्रथम अध्ययन .
.. (८५) : जइ णं भंते! अट्ठमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?
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