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________________ ****** Jain Education International वर्ग ६ अध्ययन १५- दीक्षा की भावना ***** तए णं से अइमुत्ते कुमारे गोयमेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ जाव पज्जुवासइ । भावार्थ - तब अतिमुक्तक कुमार, गौतम स्वामी के साथ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप गये और तीन बार विधिपूर्वक वंदन - नमस्कार कर के उपासना करने लगे । तणं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागए जाव पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । कठिन शब्दार्थ - पडिदंसेइ - दिखाते हैं। भावार्थ- गौतम स्वामी, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप आये और आहार दिखाया। आहार- पानी कर लेने के बाद संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । दीक्षा की भावना - भगवान् की पर्युपासना (७९) तए णं से समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स धम्मकहा। तए णं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्मं हट्ट तुट्ठ "जं णवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि ।" "अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह" । भावार्थ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अतिमुक्तक कुमार को धर्म-कथा कही । धर्म - कथा सुन कर अतिमुक्तक कुमार अत्यन्त हृष्ट-तुष्ट हो कर बोले- 'हे भगवन्! मैं अपने माता-पिता की आज्ञा ले कर आपके पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।' भगवान् ने देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु धर्म-कार्य में प्रमाद मत करो। " 'हे विवेचन गौतम स्वामी ने आहार तो ले लिया पर भोजन करने नहीं बैठे, तो बालक को जिज्ञासा हुई - ये भोजन यहीं क्यों नहीं कर रहे हैं? अन्यत्र कहाँ जा रहे हैं? पूछा तो ज्ञात हुआ कि इनके गुरु महावीर स्वामी हैं। 'शिष्य ऐसे हैं तो गुरु कैसे होगे ? क्यों न उनके दर्शन - १६५ ****** For Personal & Private Use Only - www.jalnelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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