SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [14] *********************kakakaditi******* ******kakkesekekestakakakakiatekakakakakak k ** स्वामी से पूछा कि क्या हम अपने पुत्रों को वापिस देख सकेंगे, तो उन्हें प्रभु से ज्ञात हुआ कि उनके दसों पुत्र तो युद्ध के मैदान में मारे जा चुके हैं। यह सुनकर सभी को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उन सभी ने आर्हती दीक्षा अंगीकार कर घोर तपस्या की आराधना की। काली आर्य के रत्नावली तप, सुकाली आर्या ने कनकावली तप, महाकाली आर्या ने लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप, कृष्णा आर्या ने महासिंह निष्क्रीड़ित तप, सुकृष्णा आर्या ने सप्त सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिमा तप, महाकृष्णा आर्या ने लघु सर्वतोभद्र तप, वीरकृष्णा आर्या ने महासर्वतोभद्र तप, रामकृष्णा आर्या ने भद्रोत्तर-प्रतिमा तप, पितृसेनकृष्णा आर्या ने मुक्तावली तप और महासेन कृष्णा आर्या ने आयम्बिल-वर्द्धमान तप की आराधना की। इन सभी का वर्णन प्रस्तुत अंतकृत दशा सूत्र में खूब विस्तार से किया गया है। . इस प्रकार संक्षिप्त में प्रस्तुत सूत्र का परिचय दिया गया। विस्तार से चिंतन मनन करने के लिए पाठकों को सूत्र का पारायण करना चाहिये। हमारे संघ द्वारा अंतगडदसा सूत्र मूल अन्वयार्थ, संक्षिप्त विवेचन युक्त पूर्व में प्रकाशित हो. रखा है। जिसका अनुवाद समाज के जाने माने विद्वान पं. र. श्री घेवरचन्दजी बांठिया न्याय व्याकरण तीर्थ, सिद्धान्त शास्त्री ने अपने गृहस्थ जीवन में किया था। जिसे स्वाध्याय प्रेमी श्रावकश्राविका वर्ग.ने काफी पसन्द किया। फलस्वरूप उक्त प्रकाशन की १९ आवृत्तियाँ संघ द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। अब संघ की आगम बत्तीसी प्रकाशन योजना के अन्र्तगत इसका प्रकाशन किया जा रहा है। इसके अनुवाद का कार्य मेरे. सहयोगी श्रीमान् पारसमलजी सा. चण्डालिया ने प्राचीन टीकाओं के आधार पर किया है। आपके अनुवाद को कोंडागांव के धर्मप्रेमी सुश्रावक श्रीमान् दिलीपजी चोरड़िया एवं श्रीमान् राजेशसजी चोरड़िया (दोनों भाइयों) ने वर्तमान ज्ञानगच्छाधिपति श्रुतधर भगवंत की आज्ञा से आगमज्ञ पूज्य लक्ष्मीचन्दजी म. सा. को सुनाने की कृपा की। पूज्यश्री ने जहाँ कहीं भी आगमिक धारणा सम्बन्धी न्यूनाधिकता महसूस की वहाँ संशोधन करने का संकेत किया। अतः हमारा संघ पूज्य गुरु भगवन्तों का एवं धर्मप्रेमी, सुश्रावक श्रीमान् दिलीपजी चोरडिया एवं श्रीमान् राजेशसजी चोरड़िया (दोनों भाइयों) का हृदय से आभार व्यक्त करता है। तत्पश्चात् मैंने इसका अवलोकन किया। . इसके अनुवाद में भी संघ द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के अनुवाद (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन) की शैली का अनुसरण किया गया है। यद्यपि इस आगम के अनुवाद में पूर्ण सतर्कता एवं सावधानी रखने के बावजूद विद्वान् पाठक बन्धुओं से निवेदन है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy