________________
तइयं अज्झायणं - तृतीय अध्ययन
मुद्गरपाणि (अर्जुन मालाकार)
.. (६३) तच्चस्स उक्खेवओ। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सेणिए राया चेल्लणा देवी। तत्थ णं रायगिहे णयरे अज्जुणए णाम मालागारे परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं अजुणयस्स मालागारस्स बंधुमई णामं भारिया होत्था, सुकुमालपाणिपाया। - कठिन शब्दार्थ - मालागारे - मालाकार, परिवसइ - रहता था, अड्डे - आढ्य - धनवान्, अपरिभूए - अपराभूत - किसी से नहीं दबने वाला, भारिया - भार्या,
सुकुमालपाणिपाया - सुंदर सुकोमल। . भावार्थ - जम्बू स्वामी ने सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर । स्वामी ने अंतगडदशा सूत्र के छठे वर्ग के दूसरे अध्ययन के जो भाव कहे, वे मैंने आपसे सुने। किन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तीसरे अध्ययन के क्या भाव कहे हैं, सो कृपा कर के कहिये। श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा -
हे जम्बू! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ गुणशीलक नामक उद्यान था। उस नगर में राजा श्रेणिक राज करता था। उसकी रानी का नाम 'चेलना' था। उस राजगृह में अर्जुन नाम का माली रहता था। उसकी पत्नी का नाम बन्धुमती था, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी।' - तस्स णं अजुणयस्स मालागारस्स रायगिहस्स णयरस्स बहिया एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था, किण्हे जाव णिकुरंबभूए दसद्धवण्णकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिजे अभिरूवे पडिरूवे।
कठिन शब्दार्थ - पुप्फारामे - पुष्पाराम - बगीचा, किण्हे - कृष्ण (श्याम), णिकुरंबभूए - सघन, घनघोर घटाओं से युक्त, दसद्धवण्ण - दस के आधे पांच वर्ण के, कुसुमकुसुमिए - पुष्प पुष्पित।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org