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________________ [12] 來來來來來來來水*************** *称來來來來來來來來來***************** भवन द्वार तक पहुँचाने गई। अपनी माता के ये समस्त क्रियाकलाप देख कर कुमार समझ गया कि जिसे मैं घर में लाया हूँ, वह मेरे पिता राजा से भी बढ़ कर कोई बड़ा व्यक्ति लगता है, जिसका मेरी माता ने इस प्रकार स्वागत किया। गौतम स्वामी ज्योंही गोचरी लेकर घर से निकले कुमार ने उनसे पूछा - आप कहां रहते हो? गौतम स्वामी ने बालक की बात की उपेक्षा न करके कहा इस नगर के बाहर. श्रीवन बगीचे में हमारे धर्मगुरु धर्माचार्य श्रमणभगवान् महावीर प्रभु विराजते हैं वहाँ हम रहते हैं और वही मैं जा रहा हूँ। यह सुन कर कुमार ने कहा - भगवन्! मैं भी आपके साथ भगवान् को वंदन करने चलना चाहता हूँ। गौतम स्वामी ने कहा - हे देवानुप्रिय! जैसा सुख हो, वैसा करो। गौतम स्वामी और अतिमुक्तककुमार भगवान् के समीप गये और विधि पूर्वक वंदना की। गौतम स्वामी भगवान् को गोचरी बताकर यथा स्थान चले गये तत्पश्चात् भगवान् ने अतिमुक्तक कुमार को धर्म कथा कही। धर्मकथा सुनकर कुमार अत्यन्त हृष्ट तुष्ट होकर बोला - हे भगवन्! मैं अपने माता-पिता से पूछ कर आपके पास दीक्षा अंगीकार करना चाहता हूँ। प्रभु ने फरमाया - हे देवानुप्रिय! जैसा सुख हो वैसा करो, किन्तु धर्म कार्य में प्रमाद मत करो। ___ अतिमुक्तककुमार अपने माता के पास आकर भगवान् के पास दीक्षा लेने की आज्ञा मांगता है। माता-पिता ने कहा - हे पुत्र! अभी तुम बच्चे हो, तुम्हें तत्त्वों का ज्ञान नहीं, इसलिए तुम धर्म को कैसे जान सकते हो? बालक राजकुमार ने अपने माता-पिता से कहा - आप मुझे नादान समझ कर टालना चाहते हो परन्तु हे माता-पिता! “मैं जिसे जानता हूँ उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता उसे जानता हूँ।" माता-पिता अपने पुत्र की इस पहली को नहीं समझ सके इसलिए पूछा - हे पुत्र! तुम्हारी इस पहेली का क्या अर्थ है, हमारे कुछ समझ में नहीं आया। राजकुमार ने कहा - 'हे माता-पिता! मैं यह जानता हूँ कि जिसने जन्म लिया, वह अवश्य मरेगा, किन्तु यह नहीं जानता कि वह किस काल में, किस स्थान पर और किस प्रकार और कितने समय बाद मरेगा?' इसी प्रकार हे माता-पिता! मैं यह नहीं जानता कि किन-किन कर्मों से जीव नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में उत्पन्न होते हैं। परन्तु यह अवश्य जानता हूँ कि जीव अपने ही कर्मानुसार विभिन्न योनियों में उत्पन्न होता है। इसलिए हे माता-पिता! मैंने कहा - जिसे मैं जानता हूँ उसे नहीं जानता और जिसे नहीं जानता उसे जानता हूँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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