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________________ एकादश उपासक प्रतिमाएं ६५ अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा - सव्वधम्मरुई यावि भवइ जाव उहिट्ठभत्ते से परिणाए भवइ, से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहियायारभंडगणेवत्थे, जे इमे समणाणं णिग्गंथाणं धम्मे पण्णत्ते। तं सम्मं काएण फासेमाणे पालेमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दठूण तसे पाणे उद्धटु पाए रीएज्जा, साहटु पाए रीएज्जा, तिरिच्छं वा पायं कटु रीएज्जा, सइ परक्कम(ज्जा), संजयामेव परक्कमेजा, णो उज्जुयं गच्छेजा, केवलं से णायए पेजबंधणे अवोच्छिण्णे भवइ, एवं से कप्पइ णायविहिं वइत्तए॥२५॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पड़ से चाउलोदणे पडिग्गाहित्तए, णो से कप्पड भिलिंगसूवे पडिग्गाहित्तए। तत्थ (णं) से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिंग्गाहित्तए, णो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहित्तए। तत्थ से पुव्वागमणेणं दोवि पुव्वाउत्ताई कप्पंति दोवि पडिग्गाहित्तए। तत्थ से पच्छागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई णो से कप्पंति दोवि पडिग्गाहित्तए। जे से तत्थ पुत्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पड़ पडिग्गाहित्तए। जे से तत्थ पुव्वा-गमणेण पच्छाउत्ते से शो कप्पइ पडिग्गाहित्तए॥२६॥ ___ तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पइ एवं वइत्तए "समणोवासगस्स पडिमापडिवण्णस्स भिक्खं दलयह" तं चेव एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे णं केइ पासित्ता वइज्जा-"केइ आउसो! तुमं वत्तव्वं सिया""समणोवासए पडिमापडिवण्णए अहमंसीति" वत्तव्वं सिया, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहण्णेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं एक्कारस मासे विहरेजा, एक्कारसमा उवासगपडिमा॥२७॥ एयाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ .॥२८॥त्तिबेमि॥ ॥ छट्ठा दसा समत्ता॥ ६॥ ... . कठिन शब्दार्थ - उवासगपडिमा - उपासक प्रतिमा, सव्वधम्मरुई - सर्वधर्मरुचि - अहिंसा, शान्ति आदि समस्त धर्मों में अभिरुचिशील, पट्टवियपुव्वाई - प्रस्थापित पूर्वा - पहले से शील एवं गुणव्रत आदि में प्रवर्तित, पढमा - प्रथमा - पहली, दंसणपडिमा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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