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________________ उपासक प्रतिमाएं **** वध करने, बांधने एवं परिक्लेशित करने से जीवन भर के लिए विरत नहीं होता। इसी प्रकार के पूर्ववर्णित और भी सावद्य, अबोधिजनक ( मिथ्यात्ववर्धक) कर्म करता है, अन्य प्राणियों के लिए परितापकारी कार्य करता है, (वह) जीवनपर्यन्त उनसे निवृत्त नहीं होता । पूर्वोक्त नास्तिकवादी पुरुष कलम संज्ञक शालि विशेष, मसूर, तिल, मूँग, उर्द, वालोल, कुलत्थ, चँवला, ज्वार इत्यादि धान्य वर्ग के वानस्पतिक जीवों में अयतनाशील रहता हुआ, क्रूरतापूर्वक मिथ्यादण्ड - निरपराध हिंसा का प्रयोग करता है इनका अशनादि के रूप में निहनन करता है। इसी प्रकार उस कोटि का वह पुरुष तीतर, बटेर, लवा, कबूतर, कुरज, मृग, भैंसा, सूअर, मगर, गोह, कच्छप, सरीसृपों के संदर्भ में भी अयतनाशील, असंयत रहता हुआ, क्रूरतापूर्वक इन निरपराध प्राणियों का हनन करता है । दास, प्रेष्य, वेतनभोगी, (कमीशन एजेंट), छोटे से अपराध पर स्वयमेव भारी दंड देता है उस (नास्तिकवादी) पुरुष की बाह्य परिषद् - परिजनवृन्द यथा अंशग्राही (स्वामी के लिए अर्जित आय में से प्राप्त न्यून अंशजीवी कर्मकर, भोगपुरुष - इनके किसी प्रकार के तथा ( अपने आदेशवर्तीजनों से कहता है ) इन (दास आदि) को दंडित करो, मुण्डित करो - केश काट दो, इन्हें तर्जित करो, चपेटे लगाओ। इनके हथकड़ियाँ - बेड़ियाँ डाल दो, खोड़े में जकड़ दो, कारागृह में डाल दो, इनके शरीर को उल्टा मोड़कर पैरों के साथ बांध दो। इनके हाथ, पैर, कान, नाक, होठ, मस्तक, मुख तथा जननेन्द्रिय को काट डालो। हृदय को विदीर्ण कर डालो। साथ ही साथ नेत्र, अण्डकोष, दाँत, वदन, जीभ को उत्पाटित विध्वस्त कर डालो, इन्हें उल्टे लटका दो। इनको (खुरदरे भाग पर) घसीटो। (दही की तरह) इन्हें मथ डालो। इन्हें शूली पर चढा दो । इन्हें त्रिशूल से बींध डालो। इन्हें शस्त्रों से काटकर उस पर नमक आदि क्षार पदार्थ छिड़क दो। इनके शरीर में डाभ आदि तीखे घास चुभा दो। इन्हें शेर की पूँछ से बांध दो। उसी प्रकार बैल की पूँछ से बांध दो । इन्हें दावाग्नि से जला डालो। इनके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर जंगली जानवरों के खाने के लिए फेंक दो। इनका खाना-पीना बन्द कर दो। जीवनभर के लिए इनको बांधे रखो। इन्हें अन्य किसी प्रकार की कुत्सित निर्दयतापूर्ण मौत से मार डालो । पूर्ववर्णित नास्तिकवादी पुरुष की जो आभ्यंतर परिषद् होती है, जैसे माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्री तथा पुत्रवधू आदि इनके भी छोटे से अपराध पर वह स्वयं बड़ा दंड देता है । यथा शीत ऋतु में अत्यंत ठंडे पानी से परिपूर्ण जलाशय में डूबो देता है। उनके Jain Education International - - For Personal & Private Use Only - ५९ ****** - www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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