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________________ ३८ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - चतुर्थ दशा . ." Tadkakkartattatrakattitudkdakakakakakakttatratikattraktak सहायकता के चार भेद कहे गए हैं - (१) गुरु को गौरवानुरूप शब्दों से बोलता है (जैसी 'आपकी आज्ञा है' आदि)। . (२) गुरु के अनुरूप कार्यशील होता है। (३) गुरु के लिए आत्मसमाधिकारक सेवा सुश्रूषा करता है। (४) समस्त कार्यों में गुरु के प्रतिकूल व्यवहार का वर्जन करता है। इसे सहायकता का स्वरूप जानना चाहिए। ३. वर्णसंज्वलनता के कितने प्रकार हैं? वर्णसंज्वलनता के चार प्रकार कहे गए हैं - (१). यथावत् संयम प्रतिपालक गुरु की यशः संकीर्तन करता है। (२) गुरु, आचार्य आदि के निन्दक को युक्तिपूर्वक निरुत्तर करता है। (३) जो आचार्य के गुणों का आख्यान करता है, उसको वर्धापित करता है। (४) दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ साधुओं की सेवा करता है। यह वर्णसंज्वलनता का स्वरूप है। ४. भारप्रत्यवरोहणता का क्या स्वरूप है? भारप्रत्यवरोहणता के चार प्रकार हैं - (१) वह गण से पृथक्भूत (नव) साधु को समझा-बुझाकर पुनः संघ में संग्रहीत करता है। (२) नवदीक्षित (शैक्ष) को आचार-भिक्षाचर्या आदि क्रियाएँ सीखाता है। (३) साधर्मिक श्रमणों के रोगग्रस्त होने पर यथाशक्ति वैयावृत्य में संलग्न होता है। (४) साधर्मिकों - गण के सहवर्ती साधुओं में परस्पर कलह हो जाने पर स्वयं रागद्वेष-शून्य होकर, किसी एक का पक्ष न लेकर, माध्यस्थ्यभावपूर्वक व्यवहार करता हुआ - उन्हें समझाता-बुझाता हुआ, उनमें परस्पर क्षमत-क्षमापना करवाता है, क्रोधादि उपशान्त करवाता है, सर्वथा शान्ति बनाता है। ये मुनि परस्पर तुच्छ शब्द न बोलें, व्यर्थ झंझटों से दूर रहें, परस्पर न झगड़ें, तूं-तूं-मैं-मैं न करें तथा संयम, संवर एवं समाधि में सुदृढ, सुस्थिर रहते हुए, अप्रमादी होकर संयम एवं तप द्वारा आत्मानुभावित होते हुए विहरणशील रहें, ऐसा प्रयत्न करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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