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________________ __व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक १९८ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★XXXX इसकी - शैक्षकाल की या छोटी दीक्षा एवं बड़ी दीक्षा के बीच के समय की अवधि तीन प्रकार की कही गई हैं। नवदीक्षित श्रमण की योग्यता आदि के आधार पर वह कम से कम सातवें दिन या चार मास अथवा अधिक से अधिक छह मास परिमित है। इन्हें क्रमशः जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट कहा गया है। ____ इस संबंध में इसी (व्यवहार) सूत्र के चतुर्थ उद्देशक में विस्तार से वर्णन हुआ है, जो दृष्टव्य है। .. बौद्ध धर्म में दीक्षा से पूर्व उपसंपदा दिए जाने का विधान है। उसके अनन्तर ही दीक्षा प्रदान की जाती है। क्योंकि उपसंपन्न भिक्षु तब तक भिक्षु जीवन की साधना में समर्थ होने हेतु शिक्षित, अभ्यस्त हो जाता है। आठ वर्ष से कम वय में प्रवजित बालक-बालिका को बड़ी दीक्षा देने का विधि-निषेध ... णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा ऊणट्ठवासजायं . उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा॥२८५॥ कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेगट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा॥२८६॥ कठिन शब्दार्थ - खागं - क्षुल्लक - अल्पवयस्क बालक, खुड्डियं - क्षुल्लिका - अल्पवयस्क बालिका, उणट्ठवासजायं - ऊनाष्टवर्षजात - आठ वर्ष से कम वय युक्त, उवट्ठावेत्तए - उपस्थापित करना - महाव्रतारोपण करना या बड़ी दीक्षा देना, संभुंजित्तए - एक साथ में - मांडलिक आहार कराना, साइरेगट्ठवासजायं - सातिरेकअष्टवर्षजात - आठ वर्ष से अधिक वय युक्त। ____ भावार्थ - २८५. साधु-साध्वियों को आठ वर्ष से कम आयु में प्रवजित बालक एवं बालिका को उपस्थापित करना - बड़ी दीक्षा देना, उनके साथ मांडलिक आहार करना नहीं कल्पता। २८६. साधु-साध्वियों को आठ वर्ष से अधिक आयु में प्रव्रजित बालक एवं बालिका को उपस्थापित करना - बड़ी दीक्षा देना, उनके साथ मांडलिक आहार करना कल्पता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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