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________________ १८६ व्यवहार सूत्र - दशम उद्देशक kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkakkakakakakakakiri कठिन शब्दार्थ - आगमे - द्वादश अंग आगम - उनके धारक, सुए - श्रुत - श्रुतधर या शास्त्रवेत्ता, आणा - आज्ञा - जिनेश्वर देव की आज्ञा, धारणा - गीतार्थ गुरुजन आदि द्वारा प्रदर्शित पद्धति, व्यवस्था, जीए - जीत - गुरुपरंपरागत प्रक्रियानुरूप, पट्ठवेज्जा - प्रस्थापित करे, आगमबलिया - आगम रूप बल, शक्ति या सामर्थ्य युक्त, जहा - यथा - जिस प्रकार, जया जया - यदा-यदा - जब-जब, जहिं जहिं - यत्र-यत्र - जहाँ-जहाँ, तहा तहा - तदा-तदा - तब-तब, तहिं तहिं - तत्र-तत्र - वहाँ-वहाँ, अणिस्सिओवस्सियंअनिश्रित-उपाश्रित - निश्रा-वर्जनपूर्वक, आराहए - आराधना करे। ____ भावार्थ - २७०. पाँच प्रकार का व्यवहार परिज्ञापित - प्रतिपादित हुआ है। वह इस प्रकार का है - आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा एवं जीत। जहाँ आगमधर या आगमवेत्ता हो, वहाँ आगमानुसार - आगमज्ञों के आदेश-निर्देश के अनुसार व्यवहार करे। ___ जहाँ आगमधर न हों, श्रुतधर हों, वहाँ श्रुतानुसार - श्रुतवेत्ताओं के आदेश-निर्देशानुसार व्यवहार करे। - जहाँ श्रुतधर न हो, वहाँ दूर स्थित गीतार्थ आचार्य आदि की आज्ञा अथवा जिनाज्ञा के . अनुसार व्यवहार करे। जहाँ ऐसी आज्ञामूलक स्थिति न हो, वहाँ गीतार्थ गुरुजन आदि द्वारा निर्देशित पद्धति, व्यवस्था के अनुसार व्यवहार करे। जहाँ ऐसी धारणामूलक स्थिति न हो, वहाँ गुरुपरम्परागत प्रक्रियानुरूप व्यवहार करे। इस प्रकार साधु आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा एवं जीत इन पाँच प्रकार की व्यवहार विधाओं के अनुसार व्यवहार करे - दैनन्दिन आचरण करे। . जिस प्रकार आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा तथा जीत में व्यवहार का निरूपण हुआ है, ' वैसे-वैसे साधु व्यवहार करे। - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है? (इसके उत्तर में बतलाया गया है) श्रमण-निर्ग्रन्थ आगम व्यवहार की प्रमुखता वाले होते हैं। वे इस पंचविध व्यवहार को जब-जब, जहाँ-जहाँ जिस रूप में उपादेय मानते हैं, तब-तब, वहाँ-वहाँ वे "अमुक की निश्रा लूंगा तो वे मुझे कम प्रायश्चित्त देंगे, इस प्रकार" निश्रा विशेष का वर्जन कर उसी (उपादेय) रूप में व्यवहार करते हुए जिनेश्वर देव की आज्ञा के आराधक होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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