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यवमध्य एवं वज्रमध्यं चंद्रप्रतिमाएँ
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ऐसे यवमध्य चन्द्रप्रतिमा प्रतिपन्न साधु को एक व्यक्ति के भोजन में से आहार लेना कल्पता, दो, तीन, चार या पांच व्यक्तियों के सम्मिलित भोजन में से आहार लेना नहीं
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कल्पता ।
गर्भवती, छोटे बच्चे वाली एवं बच्चे को दूध पिलाती हुई स्त्री से आहार लेना नहीं
कल्पता ।
देने वाले व्यक्ति के दोनों पैर यदि घर की देहली के भीतर या बाहर हों तो उससे आहार लेना नहीं कल्पता ।
यदि देहली को बीच में कर दाता का एक पैर भीतर और एक पैर बाहर हो, ऐसी स्थिति में शुद्ध आहार की गवेषणा करता हुआ साधु उससे भिक्षा ग्रहण करे। इस प्रकार आहार की गवेषणा करता हुआ साधु यदि ऐसी स्थिति न पाए तो वह आहार- पानी ग्रहण न करे । ( इस प्रकार - ऐसी स्थिति में दाता यदि देता हो तो यवमध्य चन्द्रप्रतिमा प्रतिपन्न साधु को आहार लेना कल्पता है, यदि ऐसी स्थिति में वह नहीं दे रहा हो तो उससे लेना नहीं कल्पता) ।
यवमध्य चन्द्रप्रतिमा प्रतिपन्न साधु को शुक्लपक्ष की द्वितीया पानी की दो-दो दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना लेना कल्पता है। अनुरूप)
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तृतीय - तीज के दिन आहार एवं पानी की तीन-तीन दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
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चतुर्थी - चौथ के दिन आहार एवं पानी की चार-चार दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है। पंचमी - पांचम के दिन आहार एवं पानी की पांच-पांच दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
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षष्ठी - छठ के दिन आहार एवं पानी की छह-छह दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है । सप्तमी सातम के दिन आहार एवं पानी की सात-सात दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
अष्टमी आठम के दिन आहार एवं पानी की आठ-आठ दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
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नवमी के दिन आहार एवं पानी की नौ-नौ दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है। दशमी के दिन आहार एवं पानी की दस-दस दत्तियाँ प्रतिगृहीत करना कल्पता है।
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दूज के दिन आहार एवं (पूर्ववत् सभी स्थितियों के
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