________________
___ व्यवहार सूत्र - सप्तम उद्देशक
१३६ wazawimaratataakaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa
से रजपरियट्टेसु असंथडेसु वोगडेसु वोच्छिण्णेसु परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुण्णवेयव्वे सिया॥२०२॥ त्ति बेमि॥
॥ववहारस्स सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥७॥ कठिन शब्दार्थ - रजपरियडेसु -राजपरावर्त या परिवर्तन होने पर - राजा की मृत्यु के पश्चात् नये राजा के अभिषिक्त होने पर, संथडेसु - संस्तृत - सम्यक् रूप में समर्थ होने पर, अव्योगडेसु - अव्याकृत - व्याकृति या विभाग रहित होने पर, अव्वोच्छिण्णेसु - अव्यवच्छिन्न - व्यवच्छेद रहित या वशपरम्परानुगत रूप में चलते रहने पर, अपरपरिग्गहिएसुअपरपरिगृहीत - किसी अन्य राजा द्वारा परिगृहीत - अधिकृत न होने पर, सच्चेव - वही, ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा. - पूर्वावग्रह - अनुज्ञापना - ठहरने, रहने, विचरने की पूर्व प्राप्त आज्ञा, चिट्ठइ - स्थित - विद्यमान रहती है, अहालंदं - यथालंद - यावत् काल पर्यन्त, अवि - अपि - भी। . भावार्थ - २०१. यदि राजा की मृत्यु हो जाए, उसके स्थान पर राजकुमार आदि अन्य राजगद्दी पर बैठे, राज-सामर्थ्य या राज-सत्ता भलीभांति चल रही हो, उनमें किसी प्रकार की व्याकृति, विभाग या विभाजन न हुआ हो, व्यवच्छेद रहित - वंशपरंपरानुगत अविच्छिन्न रूप में राज परंपरा चल रही हो, किसी अन्य आक्रान्ता या राजा द्वारा वह राज्य अधिकृत न हुआ हो तो जब तक ऐसा रहे, राज्य के स्वामी से, राजा से पूर्व गृहीत अनुज्ञा ही यथेष्ट है। .
२०२. यदि राजा की मृत्यु हो जाए और जिन स्थितियों का पूर्व सूत्र में वर्णन हुआ है, वे सब परिवर्तित हो जाएँ, राजव्यवस्था सर्वथा विच्छिन्न हो जाए, राजकुल में विभक्त हो जाए या किसी आक्रान्ता द्वारा अधिकृत हो जाए तो संयममय जीवन के नियमों या मर्यादाओं के परिपालन की दृष्टि से पुनः उनसे, जिन द्वारा राज-सत्ता अधिकृत हो, अनुज्ञा लेनी चाहिए।
विवेचन - इन सूत्रों में साधुओं के लिए राज्य में विचरण हेतु राजाज्ञा लेने के संबंध में जो वर्णन हुआ है, वह राजतंत्रात्मक व्यवस्था से संबद्ध है, जो वंशपरंपरानुसार चलती थी। तदनुसार एक ही राजा राज्य का स्वामी या शासक होता था। .. तब राजपरिवार के सदस्यों द्वारा किये जाने वाले विद्रोह, अन्य राजाओं द्वारा किये गए आक्रमण आदि प्रतिकूल स्थितियाँ संभावित थीं, जिनके कारण राजसत्ता में समय-समय पर परिवर्तन होता रहता था। वैसी बदलती हुई स्थितियों में साधु-साध्वियों को अनुज्ञा लेने के संबंध में किस विधि का अनुसरण करना चाहिए, इन सूत्रों में यह व्याख्यात हुआ है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org