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________________ व्यवहार सूत्र - सप्तम उद्देशक wikiwixxxAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAmrkarki सामान्यतः साधुओं के लिए भी वही विधान है, जो साध्वियों के लिए है। किन्तु विशेष स्थिति में यदि साधु (दीक्षार्थी) बहुश्रुत, विवेकशील, विशिष्ट वैराग्य युक्त, स्वस्थ एवं धर्मप्रसार की भावना से अभ्युपेत हो तो उसे आचार्य, उपाध्याय आदि का निर्देश कर प्रवजित करना आदि कल्प्य - विहित है, क्योंकि एकाकिनी साध्वी के लिए जो विपरीत स्थितियाँ आशंकित हैं, वे समर्थ सक्षम साधु के लिए कम संभावित हैं। कलहोपशमन-विषयक विधि-निषेध णो कप्पइ णिग्गंथाणं विइकिट्ठाई पाहुडाई विओसवेत्तए॥१८७॥ कप्पइ णिग्गंथीणं विइकिट्ठाई पाहुडाइं विओसवेत्तए॥१८८॥ कठिन शब्दार्थ - पाहुडाई - कठोर वचनादि जनित कलह, विओसवेत्तए - उपशान्त होना - क्षमायाचना करना। भावार्थ - १८७. साधुओं में यदि कठोर वचन आदि बोलने से आपस में मनमुटाव हो जाए तो दूरवर्ती क्षेत्र में रहते हुए उन्हें उसे उपशान्त करना, जिनके साथ मनमुटाव हुआ हो, उन्हें उद्दिष्ट कर क्षमायाचना करना नहीं कल्पता। १८८. यदि साध्वियों में परस्पर कलह - मनमुटाव हो जाए तो उन्हें दूरवर्ती क्षेत्र में रहते हुए भी उसे उपशान्त करना, जिनके साथ मनमुटाव हुआ हो, उन्हें उद्दिष्ट कर क्षमायाचना करना कल्पता है। . विवेचन - यद्यपि साधु-साध्वी सामान्यतः परस्पर आध्यात्मिक स्नेह एवं सामंजस्य के साथ रहते हैं, किन्तु कदाचन भावावेश या किसी कारण उत्तेजनावश परस्पर कठोर वचन बोलने आदि. का प्रसंग बन जाए, मन में कलह या वैमनस्य का भाव उत्पन्न हो जाए तो उसे क्षमायाचना आदि द्वारा उपशान्त करना, अन्तःकरण को निर्मल बनाना आवश्यक है। क्योंकि संयमूलक आध्यात्मिक जीवन जीने वाले साधु-साध्वियों के लिए परस्पर मनमुटाव रखना कभी उचित नहीं होता। इन सूत्रों में कलह या वैमनस्य को क्षमायाचना द्वारा उपशान्त करने के संबंध में साधुओं तथा साध्वियों के लिए भिन्न-भिन्न रूप में विधान किया गया है। -- जिन साधुओं में परस्पर वैमनस्य उत्पन्न हुआ हो। उनमें से कोई कलह भाव को उपशान्त किए बिना ही विहार कर दूर चला जाए, यों जिनमें कलह उत्पन्न हुआ हो, वे दोनों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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