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छट्टो उद्देसओ - षष्ठ उद्देशक स्वजनों के घर भिक्षा आदि हेतु जाने के संबंध में विधि-निषेध _भिक्खू य इच्छेज्जा णायविहं एत्तए, णो से कप्पइ थेरे अणापुच्छित्ता णायविहं एत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता णायविहं एत्तए, थेरा य से वियरेजा, एवं से कप्पड़ णायविहं एत्तए, थेरा य से णो वियरेज्जा, एवं से णो कप्पइ णायविहं एत्तए, जे तत्थ थेरेहिं अविइण्णे णायविहं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा॥१५२॥
णो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स णायविहं एत्तए॥१५३॥ - कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं णायविहं एत्तए ॥१५४॥
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए, णो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए॥१५५॥
तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिग्गाहेत्तए, णो से कप्पइ चाउलोदणे पडिग्गाहेत्तए॥१५६॥
तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पुव्वाउत्ते कप्पड़ से दो वि पडिग्गाहेत्तए॥१५७॥ तत्थ से पुव्वागमणेणं दो वि पच्छाउत्ते णो से कप्पइ दो वि पडिग्गाहेत्तए॥१५८॥ जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए॥१५९॥ जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउत्ते णो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए॥१६०॥
कठिन शब्दार्थ - णायविहं - ज्ञातविधि - माता-पिता, सास-ससुर आदि पारिवारिकजन, एत्तए - जाना, वियरेन्जा - आज्ञा दें, अविइण्णे - आज्ञा न दिये जाने पर, एगाणियस्स - एकाकी का - अकेले का, तेण - उसके, सद्धिं - साथ, तत्थ - वहाँ, पुव्वागमणेणं - आगमन से पूर्व, पुव्वाउत्ते - पहले रंधे हुए - पके हुए, चाउलोदणे - भात, पच्छाउत्ते - पश्चात् रंधी हुई, भिलिंगसूवे - मसूर आदि की दाल, पडिग्गाहेत्तए - प्रतिगृहीत करना - लेना। ___ भावार्थ - १५२. यदि भिक्षु अपने संसारपक्षीय माता-पिता, सास-ससुर आदि पारिवारिकजनों के यहाँ दर्शन देने, भिक्षा लेने आदि हेतु जाना चाहे तो स्थविरों को पूछे बिना उनके यहाँ जाना नहीं कल्पता।
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