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व्यवहार सूत्र - पंचम उद्देशक kakkakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakakke
वह यदि कहे - बाधक कारण से नहीं, प्रमाद से विस्मृत हुआ है तो उस कारण से जीवनभर के लिए उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना नहीं कल्पता।
वह यदि कहे - बाधक कारण से विस्मृत हुआ है, प्रमाद से नहीं। वह कहे कि अब मैं इसे पुनः स्मरण कर लूंगा, तदनुसार स्मरण कर ले तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना कल्पता है। ___मैं पुनः याद कर लूंगा, ऐसा कहकर भी यदि वह याद न कर पाए तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना नहीं कल्पता।
१४६. नवदीक्षिता-बालिका-युवती साध्वी से यदि आचारप्रकल्पाध्ययन विस्मृत हो जाए तो उसे पूछा जाए -
हे आर्ये! तुम किस कारण से आचारप्रकल्प नामक अध्ययन को विस्मृत किए हुए हो - भूल गई हो, क्या किसी बाधक कारण से भूली हो या प्रमाद से भूली हो? ___वह यदि कहे - 'बाधक कारण से नहीं, प्रमाद से विस्मृत हुआ है तो उस कारण से उसे जीवनभर के लिए प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिनी (गणावच्छेदिका) पद देना, धारण करना नहीं ' कल्पता।
वह यदि कहे - बाधक कारण से विस्मृत हुआ है, प्रमाद से नहीं। वह कहे कि अब मैं इसे पुनः स्मरण कर लूंगी, तदनुसार स्मरण कर ले तो उसे प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिका पद देना, धारण करना कल्पता है। ... मैं पुनः याद कर लूंगी, ऐसा कहकर भी वह याद न कर पाए तो उसे प्रवर्तिनी या .. गणावच्छेदिनी पद देना, धारण करना नहीं कल्पता।
विवेचन - श्रमण-जीवन में, जैसा अनेक स्थानों पर वर्णन आया है, आचार की शुद्धता सर्वोपरी है। दैनन्दिन कार्यों में, सभी प्रवृत्तियों में असावध का वर्जन हो, शुद्धिचर्या का पालन हो। इसके लिए तीन वर्ष की दीक्षा-पर्याय तक आचारप्रकल्प को स्मरण - कंठस्थ कर लेना आवश्यक है।
आचारप्रकल्प के अन्तर्गत आचारांग सूत्र एवं निशीथसूत्र का समावेश है। इसमें साध्वाचारविषयक विभिन्न प्रवृत्तियों का विवेचन, विश्लेषण है। संयमचर्या में राग-मोहादिवश कदापि कोई स्खलना न हो, दोष-व्याप्ति न हो, इस दिशा में प्रत्येक श्रमण-श्रमणी को जागरूक रहना अपेक्षित है। इसके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें आचारप्रकल्प भलीभाँति कण्ठस्थ रहे, जिससे प्रत्येक क्रिया में मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे, शुद्धि व्याप्त रहे।
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