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________________ व्यवहार सूत्र - चतुर्थ उद्देशक ७२ *aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaat वह यदि पद के योग्य हो तो उसे पद पर स्थापित करना चाहिए। यदि उसमें पदानुरूप योग्यता न हो तो उसे पद स्थापित नहीं करना चाहिए। वहाँ भिक्षु संघ में यदि कोई दूसरा भिक्षु पद के योग्य हो तो उसे पदासीन करना चाहिए। यदि भिक्षु संघ में दूसरा कोई पद के योग्य न हो तो उसी (जिसके लिए आचार्य आदि ने निर्देश किया हो) को पद पर नियुक्त करना चाहिए। उसके पदासीन किए जाने पर कोई दूसरा भिक्षु (स्थविर, विज्ञ) कहे कि आर्य! तुम इस पद के लिए योग्य नहीं हो, इसलिए पद का त्याग कर दो। ऐसा कहे जाने पर पद का त्याग करता हुआ वह भिक्षु दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त का भागी नहीं होता। - जो साधर्मिक - संघ में सहवर्ती साधु कल्पानुसार उसे पद-त्याग के लिए न कहें तो वे सभी उस कारण दीक्षा-छेद या परिहार - तप रूप प्रायश्चित्त के भागी होते हैं। विवेचन - पिछले सूत्र में जिस प्रकार ग्लान या रोगग्रस्त आचार्य या उपाध्याय द्वारा अपनी मृत्यु के पश्चात् साधु विशेष को - अमुक साधु को अपने पद पर नियुक्त करने का कथन किया गया है, उसी प्रकार इस सूत्र में उन आचार्य या उपाध्याय द्वारा जो मोह, रोग, परीषह इत्यादि के कारण संयम का त्याग कर जा रहे हों, अपने चले जाने के बाद अपने पद पर अमुक भिक्षु को नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है। संयम का त्याग कर जाने वाले आचार्य या उपाध्याय की मनोदशा भी सर्वथा स्वस्थ हो यह संभावित नहीं है। अत एव उनका चिन्तन निर्णय सर्वथा आदेय हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसलिए उनके कथन पर विवेक तथा गुणावगुणपरीक्षण पूर्वक ही ध्यान दिया जाना, कार्य किया जाना उचित है। जैसी स्थितियों का वर्णन पिछले सूत्र में है, लगभग वैसी ही स्थितियाँ इस सूत्र में भी हैं। अन्तर केवल ग्लानत्व और संयम त्याग का है। उपस्थापन विधि आयरियउवज्झाए सरमाणे परं चउरायपंचरायाओ कप्पागं भिक्खं णो उवट्ठावेइ कप्पाए, अस्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, णत्थि से केइ छए वा परिहारे वा, णत्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छए वा परिहारे वा॥११३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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