SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 393
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७ समूह-प्रमुख भिक्षु का निधन होने पर सहवर्ती भिक्षुओं का कर्त्तव्य .. . AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAkkxxx समूह-प्रमुख भिक्षु का निधन होने पर सहवर्ती भिक्षुओं का कर्तव्य गामाणुगामं दूइजमाणे भिक्खूय जं पुरओ कट्ट विहरेजा से य आहच्च वीसंभेजा, अत्थि या इत्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे कप्पड़ से उवसंपज्जियव्वे, णत्थि या इत्थ अण्णे केइ उवसंपजणारिहे, तस्स अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दि( सिं)सं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए, णो कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए, तंसि च णं कारणंसि णिट्ठियंसि परो वएजा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा, एवं से कंप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, णो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए, जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा॥१०९॥ वासावासं पन्जोसविए भिक्खू य जं पुरओ कट्ट विहरेजा से य आहच्च वीसंभेजा, अत्थि या इत्थ अण्णे केइ उवसंपज्जणारिहे से उवसंपजियव्वे, णत्थि या इत्थ अण्णे केड उवसंपज्जणारिहे, तस्स अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पड़ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं अण्णे साहम्मिया विहरंति तण्णं तण्णं दिसं उवलित्तए, णो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए, तंसि च णं कारणंसि णिट्ठियंसि परो वएज्जा-वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुरायं वा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, णो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए, जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा॥११०॥ कठिन शब्दार्थ - गामाणुगाम - ग्रामानुग्राम - एक गांव से दूसरे गांव की ओर, दूइजमाणे - विहार करते हुए, पुरओ - अग्र - आगे, कट्ट - करके, आहच्च - कदाचित् आयु क्षय होने पर, वीसंभेजा - देह त्याग कर दे, अत्थि - है या हो, इत्थ - वहाँ, अण्णे - दूसरा, केइ - कोई, उवसंपजणारिहे - पद योग्य - आचारांग एवं निशीथ आदि का ज्ञाता, उवसंपजियव्वे - अग्रणी पद पर स्थापित करना चाहिए, णत्थि - न हो, अप्पणो - अपना, कप्याए - आचार कल्प का अध्ययन, असमत्ते - असमाप्त - पूरा न किया हो, एगराइयाए पडिमाए - एक सत्रिक प्रतिमा द्वारा - एक-एक रात मार्ग में रुकते हुए, साहम्मिया - साधर्मिक भिक्षु, विहारवत्तियं - विहरण के उद्देश्य से, वत्थए - ठहरना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy