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________________ चउत्थो उद्देसओ - चतुर्थ उद्देशक आचार्य आदि के सहवर्ती निर्ग्रन्थों की संख्या णो कप्पड़ आयरियउवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चारए ॥ ९९॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारएं ॥ १००॥ णो कप्पड़ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए ॥ १०१ ॥ कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए ॥ १०२ ॥ णो कप्पड़ आयरियउवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासावासं वत्थए ॥ १०३ ॥ कप्प आयरियउवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥ १०४ ॥ णो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥ १०५ ॥ कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए । १०६॥ से गामंसि वा णगरंसि वा णिगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा द्रोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा संणिवेसंसि वा बहूणं आयरियउवज्झायाणं अप्पबिइयाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हांसु चारए अण्णमण्णं णिस्साए ।। १०७ ॥ से गामंसि वा णग़रंसि वा णिगमंसि वा रायहाणिए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा संणिवेसंसि वा बहूणं आयरियउवज्झायाणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अण्णमण्णं णिस्साए ॥ १०८ ॥ कठिन शब्दार्थ - एगाणियस्स- एकाकी अकेले को, हेमंत गिम्हासु - हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में, चारए विचरण विहार करना, अप्पबिइयस्स आत्मद्वितीय- अपने सहित दो के रूप में अथवा अपने अतिरिक्त एक अन्य भिक्षु के साथ, अप्पतइयस्स आत्मतृतीय - अपने सहित तीन के रूप में अथवा अपने अतिरिक्त अन्य दो भिक्षुओं के साथ वासावासं वर्षावास वर्षाकाल, वत्थए - वास करना रहना, अप्पचउत्थस्स आत्म- चतुर्थ - अपने सहित चार के रूप में या अपने अतिरिक्त तीन अन्य भिक्षुओं के साथ, बहूणं - बहुत को, अण्णमण्णं - अन्योन्य- अपने-अपने, णिस्साए - नेश्राय । - Jain Education International For Personal & Private Use Only - - www.jalnelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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