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________________ व्यवहार सूत्र - तृतीय उद्देशक ५८ xxxAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAXXX Tattatrataxx जीवितव्य स्वस्थ एवं कुशल बना रहें, साधु जीवन के निर्वाह हेतु अपेक्षित उपकरण साधुसमुदाय को निरवद्य रूप में मिलते रहें इत्यादि संघीय आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्व या कर्त्तव्य गणांवच्छेदक का होता है। उनके संबंध में लिखा है - जो संघ को सहारा देने, उसे दृढ बनाए रखने अथवा संघ के श्रमणों की संयम-यात्रा के सम्यक् निर्वाह के लिए उपधि - श्रमण जीवन के लिए आवश्यक सामग्री की गवेषणा करने के निमित्त विहार करते हैं - पर्यटन करते हैं, प्रयत्नशील रहते हैं, वे गणावच्छेदक होते हैं। श्रामण्य-निर्वाह के लिए अपेक्षित साधन सामग्री के आकलन, तत्संबंधी व्यवस्था आदि की दृष्टि से गणावच्छेदक के पद का बहुत बड़ा महत्त्व है। गणावच्छेदक द्वारा आवश्यक उपकरण जुटाने का उत्तरदायित्व सम्हाल लिए जाने से आचार्य को संघ-व्यवस्था संबंधी अन्यान्य कर्मों की संपन्नता में समय देने की अधिक अनुकूलता प्राप्त रहती है। संयम को छोड़कर जाने वाले के लिए पद-विषयक विधि-निषेध भिक्खू य गणाओ अवकम्म ओहायइ, तिणि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छरेहिं. वीइक्कंतेहिं चउत्थर्गसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स णिव्विकारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८७॥ . ___गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अणिक्खिवित्ता ओहाएजा जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८॥ गणावच्छेदए गणावच्छेइयत्तं णिक्खिवित्ता ओहाएजा, तिणि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसंतस्स * गणस्यावच्छेदो विभागोऽशोंऽस्यास्तीति। यो हि तं गृहीत्वा गच्छोपष्टम्भायवोपधिमार्गणादि निमित्तं विहरति॥ - स्थानांग सूत्र, स्थान ४, उद्देशक ३ (वृत्ति) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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